भारत में ज्यादातर किसान चावल की खेती करते हैं क्योंकि यह उनके लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद माना जाता है. लेकिन बदलते मौसम और जलवायु परिवर्तन की वजह से चावल की खेती अब जोखिम भरी होती जा रही है. हाल ही में हुए एक शोध से पता चला है कि अगर किसान चावल की जगह बाजरा, मक्का और ज्वार जैसे अनाज उगाएं, तो जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान को 11% तक कम किया जा सकता है. इसके अलावा, इससे किसानों की आमदनी भी बढ़ सकती है.
यह शोध ‘नेचर कम्युनिकेशंस’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है और इसे भारत, अमेरिका और इटली के वैज्ञानिकों ने मिलकर किया है. इसमें बताया गया है कि किसान कौन सा अनाज उगाते हैं, यह बाजार में उसकी कीमत पर निर्भर करता है. अगर सरकार किसानों को सही दिशा में प्रोत्साहित करे और चावल की जगह दूसरे अनाजों की खेती के लिए सुविधाएं दे, तो किसानों को भी फायदा होगा और पर्यावरण पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा.
शोध में यह भी बताया गया है कि चावल की खेती के लिए बहुत ज्यादा पानी और उर्वरकों की जरूरत होती है, जिससे जल संकट बढ़ता है. वहीं, बाजरा, मक्का और ज्वार जैसे अनाज कम पानी में भी अच्छे से उग सकते हैं और जलवायु परिवर्तन के असर को झेलने में सक्षम होते हैं. अगर किसानों को इन फसलों के लिए सही कीमत और सरकारी मदद मिले, तो वे इन्हें उगाने के लिए तैयार हो सकते हैं.
शोध के प्रमुख वैज्ञानिक डोंगयांग वेई (भूगोल और स्थानिक विज्ञान विभाग, डेलावेयर विश्वविद्यालय, अमेरिका) का कहना है कि अगर भारत में चावल की खेती को थोड़ा कम करके ज्यादा जलवायु-अनुकूल अनाजों की खेती को बढ़ावा दिया जाए, तो इससे किसानों को ज्यादा मुनाफा हो सकता है और अनाज उत्पादन में भी कोई कमी नहीं आएगी.
भारतीय स्कूल ऑफ बिजनेस (ISB) के प्रोफेसर अश्विनी छत्रे का कहना है कि किसान अपनी खेती का चुनाव आर्थिक कारणों को देखकर करते हैं. इसलिए सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए, जो जलवायु-अनुकूल अनाजों की खेती को प्रोत्साहित करें और किसानों को इसके लिए जरूरी आर्थिक मदद दी जाए.
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि सरकार की मौजूदा नीतियां चावल की खेती को ज्यादा समर्थन देती हैं, जिससे किसान दूसरे अनाजों की ओर जाने से बचते हैं. अगर सरकार इन नीतियों में बदलाव करे और जलवायु के अनुकूल फसलों के लिए भी बाजार बनाए, तो भारत में खेती ज्यादा टिकाऊ और फायदेमंद हो सकती है.