बदलते मौसम और बढ़ते प्रदूषण के दौर में खेती को ज्यादा टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल बनाने की जरूरत है. इसी दिशा में देश में एक नई क्रांति आ रही है, इसमें इलेक्ट्रिक फार्म मशीनरी और रिसाइकल लिथियम-आयन बैटरियों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस बदलाव से सिर्फ ईधन की बचत ही नहीं होगी, बल्कि ये खेती को ज्यादा कुशल और टिकाऊ भी बनाएगा.
कैसे बदल रही है खेती EVs के साथ?
आज दुनिया भर में अमेरिका, चीन और यूरोपीय देश खेती में इलेक्ट्रिक मशीनों को अपनाने पर जोर दे रहे हैं. आधुनिक इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर और अन्य उपकरण डीजल की जगह बैटरी से चल रहे हैं, जिससे किसानों का खर्च कम हो रहा है और पर्यावरण को भी फायदा हो रहा है. ईवी ट्रैक्टरों का एक बड़ा फायदा यह भी है कि इनसे वायु प्रदूषण कम होता है और किसानों की सेहत पर भी सकारात्मक असर पड़ता है.
सरकार दे रही मदद
इलेक्ट्रिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकारें कई तरह की योजनाएं ला रही हैं. भारत में भी इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है. 2025 के केंद्रीय बजट में इलेक्ट्रिक ट्रैक्टरों पर सब्सिडी बढ़ाने, जीएसटी कम करने और गांवों में चार्जिंग स्टेशन बनाने पर खास ध्यान दिया गया है. सरकार की FAME-III (फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स) योजना के तहत ₹12,600 करोड़ का बजट तय किया गया है, जिससे किसानों को इलेक्ट्रिक उपकरण अपनाने में मदद मिलेगी.
रिसाइकल बैटरियां कैसे फायदेमंद?
इलेक्ट्रिक खेती में बैटरियों की जरूरत तो है, लेकिन इनका सही निपटान भी जरूरी है. अगर पुरानी बैटरियों को सही तरीके से नष्ट नहीं किया जाए, तो वे मिट्टी और पानी को दूषित कर सकती हैं. इसलिए बैटरियों को रिसाइकल करने पर जोर दिया जा रहा है, जिससे दो बड़े फायदे होते हैं.
पहला रिसाइक्लिंग से बैटरियों में मौजूद लिथियम, कोबाल्ट और निकल जैसे हानिकारक तत्वों को दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है, जिससे जमीन और पानी को नुकसान नहीं होता और दूसरा लिथियम और कोबाल्ट जैसे खनिजों की मांग लगातार बढ़ रही है, लेकिन इनकी खुदाई से पर्यावरण को नुकसान होता है. बैटरियों के रिसाइक से नए खनिजों की जरूरत कम होगी और कार्बन उत्सर्जन भी घटेगा.
हरित कृषि की ओर कदम
भारत अपनी खेती को इलेक्ट्रिक उपकरणों और रिसाइकल बैटरियों के जरिए नया रूप देने के लिए तेजी से काम कर रहा है. अगर इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर, बैटरी रिसाइक्लिंग और नई तकनीक को सही तरीके से अपनाया जाए, तो खेती ज्यादा टिकाऊ और किसानों के लिए किफायती हो सकती है. इससे न सिर्फ कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी, बल्कि किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी और अगली पीढ़ी के लिए एक हरा भरा भविष्य तैयार होगा.