नीली और रवि भैंसें दूध उत्पादन में मुर्रा भैंस को कड़ी टक्कर देती हैं. ये नस्लें अधिक दूध उत्पादन के लिए जानी जाती हैं.

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ये भैंसें 12 से 15 महीने में बच्चा देने लगती हैं. यह खासियत किसानों को कम समय में ज्यादा लाभ कमाने में मदद करती है.

इन नस्लों के दूध में फैट और प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है. इस वजह से बाजार में ये दूध ऊंचे दामों पर बिकता है.

नीली और रवि भैंसों को ठंडी और छायादार जगह में रखना जरूरी होता है. गर्म वातावरण में ये भैंसें दूध देना कम कर देती हैं.

किसान सही देखरेख और सही खानपान के साथ इनसे प्रति दिन 10 से 15 लीटर तक दूध प्राप्त कर सकते हैं.

इन नस्लों को खास तरह की हरी घास, मिनरल मिक्स और पर्याप्त पानी देना इनकी दूध क्षमता को बनाए रखता है. 

यह नस्ल तेजी से लोकप्रिय हो रही है. कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली यह नस्ल ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार का साधन दे रही है.

नीली और रवि नस्लों की भैंसों की संतानें भी उच्च क्वालिटी की होती हैं. इनसे आगे की पीढ़ी में भी बेहतर उत्पादन की संभावना होती है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान पर आधारित है.

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