भारत का तो आपको पता है, जानिए पाकिस्तान में क्यों हो रहा किसान आंदोलन
पाकिस्तान में किसान सड़कों पर! एमएसपी, कॉरपोरेट फार्मिंग और निजीकरण के खिलाफ जोरदार आंदोलन. क्या है इसका असली वजह जानने के लिए पढ़े ये खबर.

भारत में तो आपने किसान आंदोलन के बारे में खूब सुना, देखा और पढ़ा होगा. पंजाब, हरियाणा की सड़कों पर ट्रैक्टर, धरने और जोशीले नारे. लेकिन जरा रुकिए, क्या आप जानते हैं कि सरहद पार, यानी पाकिस्तान में भी किसान सड़कों पर हैं? जी हां, वहां भी किसान आंदोलन की आग भड़क रही है. तो आइए, आज हम बात करते हैं कि पाकिस्तान में क्यों और किस बात को लेकर किसान गुस्से में हैं.
पाकिस्तान में किसान आंदोलन का क्या है माजरा?
भारत में किसान आंदोलन का एक बड़ा मुद्दा है एमएसपी की लीगल गारंटी. अब जरा पाकिस्तान की ओर देखिए. वहां भी किसान गेहूं पर एमएसपी की मांग कर रहे हैं. लेकिन यहां कहानी थोड़ी अलग है. वहां एमएसपी की मांग के साथ-साथ कॉरपोरेट फार्मिंग और निजीकरण का जबरदस्त विरोध हो रहा है. खासकर, पास्को, यानी पाकिस्तान एग्रीकल्चरल स्टोरेज एंड सर्विस कॉरपोरेशन के निजीकरण को लेकर किसान भड़के हुए हैं. पाकिस्तानी अखबार डॉन और ट्रिब्यून की खबरों के मुताबिक एमएसपी, कॉरपोरेट फार्मिंग, नजीकरण और सिंधु नदी पर छह नहरें बनाने के विरोध में किसान आंदोलन चल रहा है.
30 से ज्यादा जगहों पर प्रदर्शन
पाकिस्तान के किसान राबता कमेटी, यानी पीकेआरसी, इस आंदोलन की अगुआई कर रही है. इस्लामाबाद, लाहौर, बहावलपुर, राजनपुर, झांग, शिकारपुर, लरकाना समेत 30 से ज्यादा जगहों पर धरने-प्रदर्शन चल रहे हैं. पीकेआरसी के महासचिव फारूक तारिक का कहना है कि सरकार 1.7 मिलियन एकड़ खेती की जमीन कॉरपोरेट्स को सौंपने की तैयारी में है. इसका सीधा असर छोटे किसानों पर पड़ेगा, जिन्हें अपनी जमीन छोड़कर विस्थापित होना पड़ सकता है. सुनकर तो ऐसा लगता है, मानो भारत के किसान आंदोलन की कॉपी-पेस्ट खबर हो, लेकिन थोड़ा ट्विस्ट है.
महिला किसान नेताओं की दमदार आवाज
भारत में किसान आंदोलन की खबरों में महिला नेताओं की आवाज कम ही सुनाई देती है. लेकिन पाकिस्तान में पीकेआरसी की महिला नेता रिफत मकसूद ने कहा कि गेहूं की एमएसपी 4000 रुपये प्रति 40 किलो होनी चाहिए. उनका तर्क है कि एमएसपी से किसान बाजार के उतार-चढ़ाव से बच सकते हैं. वहीं, बहावलपुर में फारूक अहमद और रजिया खान ने सिंधु नदी पर कॉरपोरेट्स के लिए नहरें बनाने के प्रस्ताव को किसान विरोधी बताया.
किसानों की मुश्किलें
दरअसल पाकिस्तान के किसान इनपुट लागत बढ़ने से परेशान हैं. वहां पर उर्वरक, बीज, बिजली, सब महंगा हो रहा है. सहकारी समितियों का साथ नहीं मिल रहा. ऊपर से क्लाइमेट चेंज की मार कभी सूखा, कभी बाढ़. पानी की कमी ने हालात और बिगाड़ दिए हैं. कॉरपोरेट फार्मिंग और जमीन लीज पर देने के सरकारी फैसले से किसानों को अपनी आजीविका छिनने का डर सता रहा है.
भारत से कितनी समानता, कितना फर्क?
भारत और पाकिस्तान के किसान आंदोलन में कई बातें मिलती-जुलती हैं. एमएसपी की मांग, कॉरपोरेट्स का विरोध, ये दोनों जगह कॉमन है. लेकिन पाकिस्तान में छोटे किसानों के विस्थापन का डर ज्यादा बड़ा मुद्दा है. भारत में एमएसपी की कानूनी गारंटी की बात है, वहां सिर्फ एमएसपी की मांग. कुल मिलाकर, सरहद के दोनों तरफ किसान अपने हक के लिए डटकर लड़ रहे हैं.