कश्मीर में सूखे जैसे हालात, किसानों की मदद के लिए इमरजेंसी प्लान तैयार
SKUAST ने धान जैसी ज्यादा पानी की जरूरत वाली फसल के बजाय सूखा-रोधी मक्का की किस्में SMC-8 और SMH-5 को अपनाने की सलाह दी है.

शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (SKUAST) ने कश्मीर के किसानों के लिए एक आपातकालीन योजना तैयार की है, जिससे उन्हें सूखे जैसी परिस्थितियों से निपटने में मदद मिलेगी. इस योजना को फसल आपातकालीन योजना (Crop Contingency Plan) नाम दिया गया है. यह कदम इसलिए उठाया गया है क्योंकि इस साल सर्दियों में 80% तक बारिश की कमी दर्ज की गई, जिससे किसानों के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं.
फसल आपातकालीन योजना के प्रमुख बिंदु
वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा
इस योजना के तहत, किसानों को ऐसी फसलें उगाने की सलाह दी गई है, जो कम पानी में भी अच्छी पैदावार दे सकें. SKUAST ने धान जैसी ज्यादा पानी की जरूरत वाली फसल के बजाय सूखा-रोधी मक्का की किस्में SMC-8 और SMH-5 को अपनाने की सलाह दी है. इसके अलावा, दालें और लोबिया जैसी गर्मी सहन करने वाली फसलों की खेती को भी बढ़ावा दिया जा रहा है.
जल संरक्षण तकनीक
रिपोर्ट में मल्चिंग तकनीक अपनाने पर जोर दिया गया है, जिसमें मिट्टी की सतह को जैविक पदार्थों से ढका जाता है, ताकि नमी बनी रहे और मिट्टी की गुणवत्ता सुधरे. इसके साथ ही, ड्रिप इरिगेशन और फॉग स्प्रेयर तकनीक को बढ़ावा देने की योजना बनाई गई है, जिससे पानी का उपयोग और अधिक प्रभावी ढंग से हो सके.
सब्जियों की खेती को बनाए रखने के लिए माइक्रो-स्प्रिंकलर सिस्टम और ऑर्गेनिक मिट्टी संशोधनों को अपनाने की सिफारिश की गई है. पौधों में पानी की कमी रोकने के लिए एंटी-ट्रांसपेरेंट एजेंट्स का भी उपयोग किया जाएगा. SKUAST ने ये भी सुझाव दिया है कि फलों की फसलों में एंटी-ट्रांसपिरेंट्स और ग्रोथ रेगुलेटर स्प्रे का उपयोग किया जाए, जिससे फसल जल्दी न खिले और नमी संरक्षित रह सके.
कीट नियंत्रण उपाय
बढ़ते तापमान के कारण एफिड्स और लीफ माइनर ब्लॉच जैसे कीटों का प्रकोप बढ़ गया है. SKUAST ने इनसे बचाव के लिए रासायनिक कीटनाशकों के संतुलित उपयोग पर जोर दिया है.
किसानों को कैसे मिलेगा फायदा?
यह फसल आपातकालीन योजना कश्मीर के किसानों को सूखे जैसी स्थितियों से निपटने और फसल उत्पादन को बनाए रखने में मदद करेगी. वैकल्पिक फसलें, जल संरक्षण तकनीक और कीट नियंत्रण उपायों को अपनाकर किसान इस संकट से उबर सकते हैं. सरकार और कृषि वैज्ञानिकों की यह पहल किसानों के लिए राहत लेकर आई है और इससे खेती को अधिक टिकाऊ बनाया जा सकेगा.