बिना पैसा खर्च किए कीटों से पाएं छुटकारा, बस खाली बोरी और ग्रीस से होगा कमाल
फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए किसान कई तरह की दवाओं और महंगी ट्रैप मशीनों का सहारा लेते हैं. लेकिन आज हम आपको फसलों को कीड़ों से बचाने का एक ऐसी देसी जुगाड़ बताने वाले हैं जिसकी लागत मात्र 60 रुपये है.

खेतों पर लगी फसलों पर कीड़े लग जाना आम बात है लेकिन फसलों के लिए यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं है. इन कीड़ों से फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है जिसकी वजह से फसल बर्बाद हो जाती है. ऐसा होने पर किसान को बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है. फसलों को कीड़ों से बचान के लिए किसान कई तरह की दवाओं और महंगी ट्रैप मशीनों का सहारा लेता हैं. लेकिन आज हम आपको फसलों को कीड़ों से बचाने का एक ऐसी देसी जुगाड़ बताने वाले हैं जिसकी लागत मात्र 60 रुपये है.
येलो ट्रैप है देसी जुगाड़
इस जुगाड़ के लिए किसानों को कहीं भी भटकने की जरूरत नहीं है. किसान घर में ही रखी डीएपी की खाली बोरी जो कि पाले रंग की होती है उसको उल्टा कर उसके दोनों बाहरी हिस्सों पर अच्छे से ग्रीस लगा दें. ऐसा करने के बाद पीली बोरी को खेत में बांस के सहारे रस्सी में बांध कर टांग दें जैसै कपड़े सूखने को टांगे जाते हैं. क्योंकि ग्रामीण इलाकों में ट्रैक्टर, पंपिंग सेट, चारा मशीन समेत दूसरे कृषि उपकरणो में ग्रीस का इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए किसानों को ग्रीस भी आसानी से मिल जाती है.
पीली बोरी क्यों है फायदेमंद
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पीला रंग कीटों को अपनी ओर खींचता है. ग्रीस लगाकर बोरी टांगने से कीट पीले रंग से आकर्षित होकर बोरी की तरफ आएंगे और ग्रीस में चिपक जाएंगे. किसानों के पास सस्ते और देसी जुगाड़ के रूप में ग्रीस लगी पीली बोरी कीटों को नियंत्रित करने के लिए आधुनिक फेरोमोन ट्रैप की तरह काम कर रही है. इस देसी जुगाड़ का इस्तेमाल गांवों में खूब हो रहा है. किसान अपनी फसलों को बर्बाद होने से तो बचा ही रहे हैं साथ ही अपना पैसा भी बर्बाद होने से बचा रहे हैं.
ऐसे करें बोरी का इस्तेमाल
खेतों में पीली बोरी के दोनों बाहरी हिस्सों में ग्रीस लगाकर बांस के सहारे टांग दें. ध्यान रहे कि आप बोरियों को फसल से मात्र आधा से एक फुट ऊपर ही लगाएं. ये बोरी खेत में फसलों के अंकुरण के ठीक बाद लगाएं और फसल जब तक पक न जाएं तक लगाए रखें. महीने में कम से कम एक बार बोरी पर दोबारा ग्रीस जरूर लगाएं. बता दें कि इस पूरी प्रक्रिया में किसानों को करीब 60 से 80 रुपये तक का खर्च आएगा.