मुनाफे का सौदा है शकरकंद की खेती, इन किस्मों की करें बुवाई
शकरकंद की खेती करना मुनाफे का सौदा है. जबकि, इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है. इसकी बेलें खूबसूरत होती हैं और घर के गमलों और बगीचों में भी इसे आसानी से उगा सकते हैं.

आज के समय में किसान ऐसी फसलों की तलाश में रहते हैं जो कम लागत में ज्यादा मुनाफा दे सकें. ऐसी ही कई फसलों में से एक है शकरकंद. जिसे आमतौर पर मीठा आलू भी कहा जाता है. शकरकंद की खेती करना जितना आसान है, उतना ही यह स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है. इसके अलावा यह बागवानी प्रेमियों के लिए भी बहुत खास है. क्योंकि इसकी बेलें न सिर्फ खूबसूरत होती हैं बल्कि गमलों और बगीचों को सजाने में भी अहम भूमिका निभाती हैं. इसके साथ ही इसकी बेलें करीब 10 फीट तक लटक सकती हैं, जो किसी भी कंटेनर या बगीचे के लुक को भी बढ़ सकती हैं. तो आइए जानते हैं शकरकंद की खेती कैसे करें, इसकी किस्में कौन-कौन सी हैं और इसके सेवन के फायदे क्या हैं.
कैसी मिट्टी चाहिए शकरकंद के लिए
शकरकंद की फसल ढीली, रेतीली और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में सबसे अच्छी होती है. इसकी मिट्टी का pH 5.8 से 6.2 के बीच होना चाहिए. हालांकि ये थोड़ी अम्लीय मिट्टी (pH 5.0 तक) को भी सहन कर लेता है. अगर खेत में चिकनी मिट्टी है तो किसान उठे हुए बेड्स या गमलों में भी इसकी खेती कर सकते हैं.
कैसे करें पौधों की रोपाई और देखभाल
शकरकंद की बेलें बहुत तेजी से फैलती हैं. इसके पौधों को 12 से 18 इंच की दूरी पर लगाएं और बीजों के बीच में 3 फीट की जगह रखें ताकि बेलें आसानी से फैल सकें. रोपाई के समय अगर गमलों में पौधे जड़ से बंधे हुए हैं, तो केवल ऊपर की हरी टहनी को मिट्टी से थोड़ा ऊपर काट कर लगाएं, ये खुद ही जड़ें बना लेती हैं.
सिंचाई, कटाई और स्टॉरेज
फसल को हर हफ्ते गहराई से पानी देना जरूरी है, खासकर जब पौधे की तेजी से हो रहीं हो तो शुरुआत के एक महीने तक नियमित खरपतवार निकालना और जैविक मल्च (जैसे घास की कतरन) डालना फायदेमंद होता है. इसके साथ ही, पोटैशियम युक्त खाद डालने से मिठास और कंदों का आकार बेहतर होता है. हालांकि, कंदों पर हमला करने वाले कीट जैसे स्वीट पोटैटो वीविल, वायरवर्म्स और नेमाटोड से बचने के लिए विशेषज्ञ की सलाह जरूरी है. फसल की कटाई तब करें जब बेल पीले हो जाएं. वहीं खुदाई करते समय बेलें हटाकर हाथ से कंदों को बेहद सावधानी से निकालें. इसके साथ ही कटाई के बाद 10 दिन तक गर्म और हवादार जगह पर ‘क्योर’ किया जाता है, जिससे इनकी मिठास और पोषण बढ़ते है. इसके बाद, इन्हें 60°F तापमान पर 6 महीने तक स्टोर कर सकते है.
शकरकंद की किस्में
- श्रीभद्रा किस्म : इसे तैयार होने में करीब 90 से 105 दिन लगते हैं. इसके कंद आकार में छोटे और गुलाबी होते हैं. इसमें 33 प्रतिशत शुष्क पदार्थ, 20 प्रतिशत स्टार्च और करीब 2.9 प्रतिशत चीनी होती है.
- भू सोना बेल: ये किस्म उत्पादन और गुणवत्ता के लिहाज से बेस्ट माना जाता है. इसमें कई पोषक तत्व से भरपूर होता है. इस किस्म से शकरकंद के चिप्स और आटा भी बनाया जाता है, जिसकी बाजार में खूब मांग रहती है.
- गौरी किस्म: इसे तैयार होने में लगभग 110 से 120 दिन लगते हैं. इसके कंद का रंग बैंगनी और लाल होता है. इस किस्म से औसतन 20 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है.
- श्रीकनका किस्म: साल 2004 में विकसित की गई इस किस्म का छिलका दूधिया और अंदर का गूदा पीले रंग का होता है. यह किस्म भी 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती है. इसकी खासियत है कि इससे 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर तक उपज होता है.
- सिपस्वा 2 किस्म: यह किस्म खासतौर पर अम्लीय मिट्टी के लिए अच्छी मानी जाती है. इसमें केरोटिन की भरपूर मात्रा में होती है, जिस कारण यह सेहत लिए और भी अधिक फायदेमंद होती है. यह किस्म लगभग 110 दिनों में तैयार हो जाती है और 20 से 24 टन प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है.
शकरकंद खाने के फायदे
- शकरकंद केवल दिखने में सुंदर नहीं है, इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं.
- इसमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है जो शरीर को भरपूर ऊर्जा देता है.
- इसमें मौजूद फाइबर पेट साफ रखने में मदद करता है.
- शकरकंद में विटामिन A, C, B6, मैग्नीशियम और आयरन होता है जो शरीर को बीमारियों से लड़ने में मदद करता है.
- इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है जिससे यह ब्लड शुगर नियंत्रित करता है.
- इसमें मौजूद विटामिन A और C त्वचा को चमकदार बनाते हैं और आंखों की रोशनी को बढ़ाने में मदद करते हैं.