रबर का पेड़ दे सकता है हर साल लाखों का मुनाफा, जानिए कैसे करें इसकी खेती
रबर का इस्तेमाल खाने की चीजों के लिए नहीं होता, इसका सबसे ज्यादा टायर बनाने, दस्ताने, बेल्ट, पाइप, चप्पल के साथ साथ मशीनों के जरूरी पार्ट्स को बनाने के लिए उपयोग किया जाता है.

अगर आप भी खेती से कुछ नया और टिकाऊ कमाना चाहते हैं, तो रबर का पेड़ आपके लिए एक बेहतरीन मौका हो सकता है. यह खेती धीरे-धीरे आमदनी का मजबूत जरिया बनती जा रही है, खासकर उन इलाकों में जहां मौसम नम और गर्म रहता है. आइए, आसान भाषा में जानते हैं रबर क्या है, इसकी खेती कैसे होती है और ये किसानों के लिए क्यों फायदेमंद है.
रबर का पौधा आखिर क्या है?
रबर कोई नई चीज नहीं है. ये पेड़ असल में अमेजन के जंगलों से, एशिया और अफ्रीका के कुछ गर्म इलाकों में लाया गया था. जिसके बाद भारत में भी अब ये अच्छे से फल-फूल रहा है.
इसके पेड़ को Hevea brasiliensis नाम से जाना जाता है, जब इसके तने को हल्का सा काटा जाता है, तो इसमें से एक सफेद दूध जैसा तरल निकलता है, जिसे लेटेक्स कहते हैं। यही लेटेक्स बाद में रबर का रूप ले लेता है.
रबर का इस्तेमाल
रबर का इस्तेमाल खाने की चीजों के लिए नहीं होता, इसका सबसे ज्यादा टायर बनाने, दस्ताने, बेल्ट, पाइप, चप्पल के साथ साथ मशीनों के जरूरी पार्ट्स को बनाने के लिए उपयोग किया जाता है, यानी आसान भाषा में कहें तो रबर की मांग कभी कम नहीं होती.
कहां होती है रबड़ की खेती?
भारत में रबर की खेती सबसे पहले केरल में 1895 में शुरू हुई थी. आज ये राज्य रबर उत्पादन में सबसे आगे है. पूरे देश की 90% रबर यहीं से मिलती है. इसके अलावा कर्नाटक, त्रिपुरा तमिलनाडु और नॉर्थ ईस्ट के कुछ राज्यों में इसकी खेती होती है. जहां साल भर नमी और तापमान लगभग 25 से 35 डिग्री सेल्सियस रहता है, जो कि रबड़ की खेती के लिए बेस्ट वातावरण रहता है.
रबड़ की खेती करने का तरीका
भूमि का चयन: रबड़ की खेती के लिए लाल लेटराइट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है. साथ ही इसकी जल निकासी सही होनी चाहिए, क्योंकि ज्यादा पानी पेड़ को नुकसान पहुंचा सकता है.
पौधारोपण का समय: रबड़ के पौधे आमतौर पर मानसून की शुरुआत में लगाए जाते हैं, यानी जून-जुलाई में.
पौधों की दूरी: पौधों को लगाते समय ध्यान रखें कि उनके बीच करीब 5 से 6 मीटर की दूरी हो ताकि उन्हें बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिले.
देखभाल: शुरुआती 5-6 साल पौधे बड़े होने में लगाते हैं. इस दौरान नियमित सिंचाई, गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण करना जरूरी होता है.
टेपिंग प्रक्रिया: पौधा लगाने के लगभग 6 से 7 साल बाद पेड़ की छाल से रबड़ का दूध यानी लेटेक्स निकालने की प्रक्रिया शुरू होती है, जिसे ‘टेपिंग’ कहा जाता है. यह काम एक खास प्रकार के चाकू की मदद से किया जाता है.
कितना होता है मुनाफा?
एक एकड़ में लगभग 150-180 रबड़ के पेड़ लगाए जा सकते हैं और हर पेड़ से साल में लगभग 3 से 4 किलो के करीब लेटेक्स निकाला जाता है. जिससे किसानों की साल में लाखों की कमाई हो पाती है.