141 दिन में तैयार हो जाती है सरसों की ये नई किस्म, बंपर तेल ने बनाया पॉपुलर

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने सरसों की पूसा डबर जीरो 33 किस्म विकसित की है. यह किस्म तेल की अधिक मात्रा देने और कम समय में पककर तैयार होने के चलते किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है.

141 दिन में तैयार हो जाती है सरसों की ये नई किस्म, बंपर तेल ने बनाया पॉपुलर
Noida | Published: 4 Apr, 2025 | 09:20 PM

किसान हमेशा ऐसी फसल की तलाश में रहते हैं, जो कम मेहनत में अधिक मुनाफा दे सके. ऐसे किसानों के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR_IARI) के सरसों की पूसा डबल जीरो 33 किस्म को विकसित किया है. यह एक ऐसी किस्म है जो कम समय और लागत में किसानों को बंपर उपज के साथ ज्यादा मुनाफा देती है. इस सरसों किस्म को मैदानी इलाकों में आसानी से और ज्यादा उपज हासिल की जा सकती है. यह एक ऐसी किस्म है जो बेहतर उपज के साथ तेल और बीज दोनों ही मानक के अनुसार मानव और पशु आहार के लिए फायदेमंद होती है. अगर आप भी इन क्षेत्रों में खेती करते हैं, तो यह किस्म आपकी आय के लिए बेहतर जरिया बन सकती है.

पूसा डबल जीरो 33 की खासियत

पूसा डबल जीरो 33 सरसों किस्म में  इरुसिक एसिड और ग्लूकोसिनोलेट की मात्रा अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार बहुत कम होती है. इसमें इरुसिक एसिड का स्तर 2 फीसदी से कम और ग्लुकोसिनोलेट का स्तर 30 माइक्रोमोल से कम होता है. इस वजह से यह अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुकूल होती है. यह इंसानों और पशुओं के आहार के लिए बिल्कुल सुरक्षित मानी जाती है. यह खासियत इसे अन्य सरसों की किस्मों से अलग और बेहतर बनाती है.

किसके लिए है यह किस्म

यह किस्म उन क्षेत्रों के लिए खास विकसित की गई है, जहां समय पर सिंचाई आसानी से हो जाती है जैसे कि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के मैदानी इलाके और हिमाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों में बेहतरीन परिणाम देती है. इन क्षेत्रों में इसकी खेती करने से किसानों को अधिक उपज और बेहतर परिणाम मिल सकते हैं.

141 दिन में हो जाती है तैयार

इस किस्म की खेती से किसानों को कई फायदे हो सकते हैं.  यह किस्म 141 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इसके साथ ही सरसों की औसत उपज 26.44 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. जिससे किसान कम समय में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. इसमें 38 फीसदी तक तेल हासिल किया जा सकता है. इसमें एरूसिक एसिड और ग्लुकोसिनोलेट का स्तर कम होने के कारण यह स्वास्थ्य के लिए बेहतर होती है. इसका तेल न केवल मानव आहार के लिए, बल्कि इसकी खल पशु आहार के लिए भी उत्तम है.

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