पंजाब में पूसा-44 और हाइब्रिड धान की किस्मों पर बैन, जानिए क्या है कारण

पूसा-44 एक ऐसी धान की किस्म है जो बहुत अधिक पानी की मांग करती है और कटाई के बाद भारी मात्रा में पराली (stubble) छोड़ती है.

पंजाब में पूसा-44 और हाइब्रिड धान की किस्मों पर बैन, जानिए क्या है कारण
नोएडा | Updated On: 8 Apr, 2025 | 05:00 PM

पंजाब सरकार ने एक अहम फैसला लेते हुए इस साल से राज्य में पूसा-44 और अन्य हाइब्रिड धान की किस्मों की खेती और बिक्री पर रोक लगा दी है. सरकार का कहना है कि यह कदम पानी की बचत और पर्यावरण संरक्षण के लिए उठाया गया है. लेकिन इस फैसले को लेकर राज्य के किसान बेहद नाराज हैं.

क्यों लगाया गया पूसा-44 पर बैन?

पूसा-44 एक ऐसी धान की किस्म है जो बहुत अधिक पानी की मांग करती है और कटाई के बाद भारी मात्रा में पराली (stubble) छोड़ती है. इससे न केवल भूजल स्तर तेजी से घटता है, बल्कि पराली जलाने से वायु प्रदूषण भी बढ़ता है.

सरकार के अनुसार, यह फैसला पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) की सिफारिशों के आधार पर लिया गया है, जो कम पानी वाली फसलों और सीधे बीजारोपण (Direct Seeding of Rice – DSR) को बढ़ावा दे रहा है.

खर्च और नुकसान भी है एक वजह

पूसा-44 किस्म पर कीट और बीमारियों का अधिक असर होता है, जिससे किसान महंगे कीटनाशकों और दवाओं का इस्तेमाल करते हैं. इससे खेती की लागत बढ़ती है और मिट्टी, पानी और हवा पर भी बुरा असर पड़ता है.

इसके अलावा, कई हाइब्रिड किस्में खाद्य निगम (FCI) के गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतरतीं, जिससे किसानों को बाजार में उनका उचित मूल्य नहीं मिल पाता.

सरकार ने क्या अपील की?

कृषि विभाग ने सभी किसानों से अपील की है कि वे इस नई नीति का पालन करें और पर्यावरण को बचाने में सहयोग करें. सरकार ने यह भी कहा कि किसान अब कम पानी खर्च करने वाली किस्में जैसे PR 126 का इस्तेमाल करें, जो जल्दी तैयार हो जाती हैं और पानी की बचत भी करती हैं.

किसानों की नाराजगी और सवाल

कई किसान इस फैसले से नाखुश हैं. उनका कहना है कि उन्होंने पहले ही बीज खरीद लिए थे, और सरकार ने बिना बातचीत के फैसला लिया है. कुछ किसान कहते हैं कि हरियाणा के करनाल से बीज आ चुके हैं, और अब रोक लगाना सही नहीं है. भारतीय किसान यूनियन (उग्राहन) ने इस रोक के खिलाफ प्रदर्शन करने की बात भी कही है.

पिछले सालों में कितनी थी बुवाई?

पिछले कुछ वर्षों में पंजाब में पूसा-44 और हाइब्रिड धान की किस्मों की बुवाई में काफी उतार-चढ़ाव देखा गया है. वर्ष 2022 में पूसा-44 की बुवाई कुल 5.67 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की गई थी, जबकि 2023 में यह घटकर 3.86 लाख हेक्टेयर रह गई. ताजा अनुमानों के अनुसार, 2024 में लगभग 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में पूसा-44 और अन्य हाइब्रिड किस्मों की बुवाई की गई. इसमें से करीब 2 लाख हेक्टेयर भूमि पर हाइब्रिड धान की किस्में बोई गईं, जो किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं.

आगे क्या?

अब पंजाब सरकार की कोशिश है कि किसान पर्यावरण के अनुकूल किस्मों की तरफ बढ़ें और भूजल की बचत करें. हालांकि, इसके लिए सरकार को किसानों को भरोसे में लेकर, सही जानकारी और विकल्प देना होगा, ताकि वे इस बदलाव को समझ सकें और अपनाने को तैयार हों.

Published: 8 Apr, 2025 | 03:48 PM

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