पंजाब में खेती का भविष्य संकट में, आई टेंशन बढ़ाने वाली खबर

पंजाब में पानी की अधिक खपत को रोकने के लिए राज्य सरकार ने एक पायलट योजना शुरू की है. इस योजना में 6 कृषि फीडर जोन के किसानों को सीमित बिजली दी जाती है.

पंजाब में खेती का भविष्य संकट में, आई टेंशन बढ़ाने वाली खबर
नोएडा | Published: 14 Apr, 2025 | 08:10 AM

पंजाब के आर्थिक सर्वेक्षण 2024–25 में किसानों के लिए चिंता बढ़ाने वाली रिपोर्ट आई है. इसमें यह साफ कहा गया है कि राज्य की धान-गेहूं की खेती प्रणाली अब न केवल आर्थिक रूप से बल्कि पर्यावरण के हिसाब से भी अस्थिर हो चुकी है. रिपोर्ट में बताया गया है कि धरती के पानी के ज्यादा इस्तेमाल, मिट्टी की सेहत का खराब होना और खेती की लागत का बढ़ना इस प्रणाली के लिए एक बड़े संकट का रूप ले चुका है.

पिछले कुछ सालों में धान और गेहूं की उपज में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है, जबकि इन दोनों फसलों ने 7.78 मिलियन हेक्टेयर खेती की भूमि का 86% हिस्सा ले रखा है.

पंजाब पूरे देश में गेहूं का 15% और चावल का 9.57% उत्पादन करता है. यह आंकड़ा देश की खाद्य आपूर्ति के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. इसके बावजूद, यह प्रणाली अब आर्थिक रूप से सस्ती नहीं रह गई, और जलवायु परिवर्तन और पानी की कमी के चलते यह भविष्य में और भी मुश्किलें पैदा कर सकती है.

अब जरूरी है बदलाव

आर्थिक सर्वेक्षण में अलग-अलग फसलों के उत्पादन को लेकर सिफारिश की गई है. इसमें दालें और तेलहन (सरसों, सूरजमुखी आदि) जैसी फसलों को बढ़ावा दिया जा सके. इन फसलों की देश में अच्छी मांग है और इससे किसानों की कमाई में सुधार हो सकता है. इसके अलावा, सरकार ने दालें, तेलहन, मक्का और कपास जैसी फसलों की MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर खरीद की गारंटी देने का फैसला लिया है.

जल संकट को रोकने के लिए कदम

पंजाब में पानी की अधिक खपत को रोकने के लिए राज्य सरकार ने एक पायलट योजना शुरू की है. इस योजना में 6 कृषि फीडर जोन के किसानों को सीमित बिजली दी जाती है. अगर किसान तय सीमा से कम बिजली का इस्तेमाल करते हैं, तो उन्हें कारोबारी लाभ मिलेगा. इस योजना का मकसद पानी की अधिक खपत को रोकना है और किसानों को आर्थिक मदद देना है.

पंजाब की खेती पर बढ़ता दबाव

पंजाब में खेती की तीव्रता पहले ही बहुत ज्यादा हो चुकी है. 2022–23 में यह 191.7% तक पहुंच चुकी है, जो कि देश के औसत 155.9% से कहीं अधिक है. इसके साथ ही उर्वरकों का इस्तेमाल भी काफी बढ़ गया है, जो कि 247.6 किलो प्रति हेक्टेयर है, जो पूरे भारत के औसत से कहीं अधिक है. इससे मिट्टी की क्वालिटी प्रभावित हो रही है, और इससे बचने के लिए सतत खेती की जरूरत है.

Topics: