प्रेम सिंह से सीखने आ रहे इजराइल के किसान, खेती का देसी फॉर्मूला बना मिसाल
उत्तर प्रदेश में बांदा के सफल किसान प्रेम सिंह अब अपनी खेती की तकनीक को इजराइल जैसे देशों के किसानों को सिखा रहे हैं. उनकी देसी कृषि पद्धतियों ने न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया है.

बांदा. जलवायु परिवर्तन से पूरी दुनिया जूझ रही है. ऐसे में इज़राइल जैसे देश, जो कृषि नवाचार में अग्रणी माने जाते हैं, अब खेती को पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य सुरक्षा को नुकसान पहुंचाए बिना लाभकारी कैसे बनाया जाए, यह सीखने के लिए भारत आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में स्थापित किसान विद्यापीठ अब वैश्विक किसानों के लिए सीखने का केंद्र बन गया है. पानी की कमी और सूखे से प्रभावित बुंदेलखंड में एक किसान हैं, प्रेम सिंह. जिनसे न केवल देश बल्कि एशिया भर के किसान खेती का गुरुमंत्र सीखने आते हैं. बांदा जिले के बड़ोखर खुर्द गांव के रहने वाले प्रेम सिंह ने अपने नवाचारों से बंजर भूमि को हरा-भरा बना दिया है. क्या है इनकी कहानी? आइए जानते हैं.
नौकरी छोड़ खेती को चुना
1980 के दशक में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमबीए कर उन्होंने कुछ समय नौकरी की, लेकिन मन न लगने पर गांव लौटकर खेती शुरू की. 14 एकड़ जमीन पर वे तब से अब तक खेती कर रहे हैं. किसान इंडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ाई से कोई किसान नहीं बनता, इसके लिए प्रैक्टिकल ज्ञान जरूरी है. इसी सोच से उन्होंने किसान विद्यापीठ की स्थापना की, जहां अब सैकड़ों किसान तकनीक सीखने आते हैं और अपनी उपज भी बेचते हैं. इतना ही नहीं, इजराइल जैसे कृषि-प्रधान देश के किसान भी प्रेम सिंह से सीखने आ रहे हैं.
पुराने बीजों के संरक्षण पर जोर
प्रेम सिंह का कहना है कि दुनिया की बड़ी कंपनियों की नजर हमारे देशी बीजों पर है, जो किसानों की रीढ़ हैं. पहले किसान बारिश के मौसम में लौकी, कद्दू, करेला जैसी सब्जियां खुद उगाते थे और उनके बीजों को सुखाकर संभाल लेते थे. वही बीज अगले साल बोया जाता था. लेकिन अब वही बीज किसान को 40,000 रुपये तक प्रति किलो की कीमत पर खरीदने पड़ रहे हैं. इसलिए देशी बीजों का संरक्षण बेहद ज़रूरी है.
Prem Singh successful farmer Banda Uttar Pradesh
खेती में मुनाफा चाहिए तो पशुधन जरूरी
प्रेम सिंह बताते हैं कि किसान की लागत लगातार बढ़ रही है और उत्पादन घट रहा है. इसका एक बड़ा कारण रसायनों का अत्यधिक इस्तेमाल है. पहले हमारी खेती जैविक थी जैसे कि पशुधन था, गोबर से खाद बनती थी, चूल्हे की राख से कीट नियंत्रण होता था. लेकिन अब जानवर पालना लगभग बंद हो गया है और बाजार की रासायनिक खाद खेतों में डाली जा रही है, जिससे मिट्टी और शरीर दोनों बीमार हो रहे हैं. वहीं आज प्रेम सिंह की जैविक खेती को समझने 24 से अधिक देशों के किसान और वैज्ञानिक आ चुके हैं.
खेती में संतुलन और धैर्य का मंत्र
प्रेम सिंह मानते हैं कि खेती में पांच तरह का संतुलन जरूरी है-
1. जल संतुलन
2. वायु संतुलन
3. ताप संतुलन
4. उर्वरा संतुलन
5. ऊर्जा संतुलन
वे जितना पानी खेत से लेते हैं, उससे ज़्यादा वापस जमीन में रिचार्ज करते हैं. उत्पादन से अधिक जैविक खाद खेतों में देते हैं, जिसे वे गाय, भैंस, बकरी और मुर्गियों के गोबर व खाद से तैयार करते हैं. मुर्गी की खाद में फॉस्फोरस और कैल्शियम, बकरी की खाद में मिनरल्स और गाय-भैंस की खाद में कार्बन अधिक होता है. इन सभी को प्रोसेस करके खेत में डाला जाता है.इतना ही नहीं ताप और वायु संतुलन के लिए उन्होंने बागवानी और वनों का विकास किया है.