क्या है नैनो डीएपी और डीएपी का अंतर, कैसे होता है दोनों का इस्तेमाल?
नैनो डीएपी दरअसल नाइट्रोजन और फास्फोरस से बना हुआ एक लिक्विड उर्वरक है. इसका प्रयोग गेहूं, चावल, मक्का, फल, सब्जियां, तिलहन, दलहन, कपास, गन्ना और प्याज जैसी फसलों के लिए किया जा सकता है.

उत्तर भारत के कई हिस्सों में पिछले कुछ समय से अधिकांश इलाकों के किसानों को डीएपी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. किसान इसे हासिल करने के लिए कई घंटों तक लंबी-लंबी कतारों में खड़े रहने को मजबूर हो जाते हैं. कभी-कभी तो किसानों की भीड़ को संभालने के लिए पुलिस को भी एक्शन लेना पड़ता है. यहां तक कि कई बार किसानों ने इसकी वजह से खुदकुशी तक कर ली है. डीएपी किसानों के लिए बेहद जरूरी खाद या उर्वरक है और जब उन्हें यह नहीं मिल पाता है तो उनका अच्छी आय का सपना टूट जाता है. वहीं कई लोगों के मन में यह सवाल भी आता है कि क्या इसकी जगह नैनो-डीएपी का प्रयोग हो सकता है. जानिए क्या है दोनों के बीच अंतर और क्यों इसका प्रयोग अलग-अलग होता है.
क्या है नैनो डीएपी और डीएपी
नैनो डीएपी दरअसल नाइट्रोजन और फास्फोरस से बना हुआ एक लिक्विड उर्वरक है. इसका प्रयोग गेहूं, चावल, मक्का, फल, सब्जियां, तिलहन, दलहन, कपास, गन्ना और प्याज जैसे अनाज सहित फसलों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए किया जा सकता है. जहां दानेदार डीएपी जहां गेहूं या बाकी फसल की बुवाई के समय मिट्टी में मिलाई जाती है तो वहीं नैनो डीएपी लिक्विड होने के चलते उससे बीज उपचार कर सकते हैं या फसलों की पत्तियों पर छिड़क सकते हैं.
जहां दानेदार डीएपी का प्रयोग फसलों की बुवाई के समय किया जाता है तो वहीं नैनो डीएपी का असली प्रयोग बीजोपचार में होता है. डीएपी को फसलों की जड़ के पास प्रयोग किया जाता है और फिर इसके ऊपर मिट्टी की परत चढ़ा दी जाती है. जबकि नैनो डीएपी को फसलों पर छिड़का जाता है. जहां डीएपी को पेड़-पौधों के चारों ओर गड्ढा बनाकर उसमें डाला जाता है तो वहीं लिक्विड होने की वजह से नैनो डीएपी का सिर्फ स्प्रे ही किया जा सकता है.
कैसे करें नैनो डीएपी का प्रयोग
तीन से पांच मिली प्रति किलो बीज के लिए नैनो डीएपी को जरूरी मात्रा में पानी में घोलकर 20-30 मिनट के लिए छोड़ दें. इससे बीज की सतह पर नैनो डीएपी की एक परत आ जाएगी. इसके बाद इसे छाया में सुखाकर बुवाई कर दें. नैनो डीएपी को तीन से पांच मिली प्रति लीटर पानी में डालें. इसके बाद जरूरी मात्रा में नैनो डीएपी के इस घोल में अंकुर की जड़ों या कंद को 20-30 मिनट के लिए डुबोकर फिर इसे भी सुखने के लिए रख दें. इसके बाद आप इसकी रोपाई कर सकते हैं.
अगर आपको पत्तों पर छिड़काव करना है तो फिर जब अच्छे पत्ते आ जाएं तो नैनो डीएपी को 2 से 4 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर उसका छिड़काव करें. उच्च फास्फोरस की जरूरत वाली फसलों में फूल आने से पहले की अवस्था में एक अतिरिक्त छिड़काव किया जा सकता है.
वहीं डीएपी का प्रयोग पहले से बोई गई खेती या फसलों में किया जा सकता है. जहां डीएपी की खुराक फसल और मिट्टी के हिसाब से होनी चाहिए वहीं नैनो डीएपी को सिर्फ फसल की जरूरत के हिसाब से ही प्रयोग करते हैं. डीएपी का प्रयोग फूल वाली फसल और सब्जियों के लिए किया जा सकता है. साथ ही साथ भारी जमीन के लिए इसे एक अच्छी खाद माना गया है.