फंगल इंफेक्शन नहीं करेगा अब फसल बर्बाद, अपनाएं ये असरदार उपाय
ट्राइकोडर्मा एक लाभकारी फफूंद (फंगस) है जो मिट्टी में मौजूद हानिकारक फफूंदों से लड़कर फसलों की रक्षा करता है.

गर्मी के बाद जब मानसून की बौछार खेतों को भिगोती है, तो फसलों के साथ-साथ बीमारियां भी खेतों में दस्तक देने लगती हैं. खासतौर पर फंगल रोग, जो फसलों की जड़ों और पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं, किसानों के लिए बड़ी चिंता का कारण बनते हैं. लेकिन अब किसान इन रोगों से आसानी से निपट सकते हैं, सिर्फ ट्राइकोडर्मा जैसे जैविक उपाय अपनाकर.
क्या है ट्राइकोडर्मा और क्यों है खास?
ट्राइकोडर्मा एक लाभकारी फफूंद (फंगस) है जो मिट्टी में मौजूद हानिकारक फफूंदों से लड़कर फसलों की रक्षा करता है. यह बीज, मिट्टी और जैविक खाद के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जा सकता है. खास बात ये है कि यह रासायनिक कीटनाशकों की तरह मिट्टी या पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता.
फसल को रोगों से बचाए
जब ट्राइकोडर्मा को गोबर की खाद में मिलाया जाता है और खेतों में छिड़का जाता है, तो यह फसलों को जड़ सड़न, डैम्पिंग-ऑफ, पत्तियों पर फफूंदी जैसे रोगों से बचाता है. इस मिश्रण को तैयार करने के लिए 45-50 किलो सड़ी गोबर की खाद में 1 किलो ट्राइकोडर्मा मिलाएं और 10-15 दिन तक छांव में रखें. जब यह तैयार हो जाए, तो इसे खेतों में नमी की अवस्था में शाम के समय छिड़कें.
75% तक अनुदान
ट्राइकोडर्मा की बढ़ती मांग को देखते हुए सरकार भी किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. कृषि विभाग इसके उपयोग पर 75 प्रतिशत तक अनुदान दे रहा है ताकि किसान जैविक खेती को अपना सकें और रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम हो.
फायदा ही फायदा
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि ट्राइकोडर्मा का पहला असर भले ही धीरे दिखाई दे, लेकिन लंबे समय में यह खेत की मिट्टी को उपजाऊ बनाता है और फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में बढ़ोतरी करता है. इससे फसलें ज्यादा समय तक रोगों से सुरक्षित रहती हैं और किसानों को बाजार में बेहतर दाम मिलते हैं.