मुलेठी बना देगी अमीर, बस जान लें खेती का सही तरीका
आयुर्वेदिक उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण मुलेठी की खेती किसानों के लिए कम लागत में अधिक लाभ देने वाली फसल साबित हो रही है.

मुलेठी एक औषधीय पौधा है, जिसे अलग-अलग इलाकों में यष्टिमधु, मधुयष्टि आदि नामों से जाना जाता है. भारत सहित अन्य देशों में इसका उपयोग आयुर्वेदिक और एलोपैथिक दवाओं के साथ-साथ सौंदर्य प्रसाधनों में भी किया जाता है.
हाल के सालों में आयुर्वेदिक उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण मुलेठी की खेती किसानों के लिए कम लागत में अधिक लाभ देने वाली फसल साबित हो रही है. यदि आप भी मुलेठी की खेती करने का मन बना रहे हैं, तो आइए जानते हैं इससे जुड़ी हर एक बात.
मुलेठी के पौधे की विशेषताएं
यह झाड़ीदार पौधा होता है, जिसकी ऊंचाई लगभग 1 से 1.5 मीटर तक होती है और इसके फूल गुलाबी या जामुनी रंग के होते हैं. इसके फल लंबे और चपटे आकार के होते हैं और मुख्य रूप से इसकी जड़ें औषधीय उपयोग के लिए इस्तेमाल की जाती हैं.
जलवायु और मिट्टी
इसकी खेती भारत के लगभग सभी हिस्सों में की जा सकती है. अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट या रेतीली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है और मिट्टी का pH स्तर 6 से 8.2 के बीच होना चाहिए. गर्म और समशीतोष्ण जलवायु में इसका विकास बेहतर होता है. उच्च तापमान वाली स्थिति पौधों के लिए अधिक अनुकूल होती है.
बीज की मात्रा और चयन
प्रति एकड़ खेती के लिए 100-125 किलोग्राम जड़ें आवश्यक होती हैं. रोपाई के लिए 7-9 इंच लंबी जड़ों का चयन करें. जड़ों में कम से कम 3-4 आँखें होनी चाहिए, जिससे बेहतर अंकुरण हो सके.
खेत की तैयारी
खेत की गहरी जुताई करें, जिससे पुरानी खरपतवार और फसल के अवशेष नष्ट हो जाएं. 2-3 बार कल्टीवेटर से तिरछी जुताई करें और अंतिम जुताई से पहले प्रति एकड़ 10-12 टन गोबर की खाद मिलाएं. खेत में नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई करें और फिर हल्की जुताई करके मिट्टी को समतल करें. जल निकासी की उचित व्यवस्था करें ताकि खेत में पानी का ठहराव न हो.
रोपाई की विधि
जड़ों की रोपाई कतारों में करनी चाहिए. हर कतार के बीच 90 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 45 सेंटीमीटर की दूरी रखें. जड़ों का ¾ भाग मिट्टी के अंदर और ¼ भाग मिट्टी के बाहर रहना चाहिए.
सिंचाई
रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें और अंकुरण तक खेत में नमी बनाए रखें. ठंड के मौसम में महीने में एक बार सिंचाई करें, जबकि गर्मी के मौसम में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें. जबकि मानसून के दौरान अतिरिक्त सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती.
फसल की खुदाई और उत्पादन
रोपाई के 3 साल बाद फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है. 2-2.5 फीट गहरी खुदाई करके जड़ों को निकालें और धूप में सुखाकर बाजार में बिक्री के लिए तैयार करें. प्रति एकड़ 30-35 क्विंटल तक जड़ों की पैदावार प्राप्त की जा सकती है.