कम समय में ज्‍यादा उपज: पंजाब के किसान कर रहे ऐसे हाइब्रिड चावल की खेती

पंजाब के किसान हाइब्रिड चावल 7501 और 7301 जैसी ‘सावा’ किस्मों की खेती कर रहे हैं जो 125 से 130 दिनों में पक जाती हैं. हाइब्रिड किस्‍मों से उन्‍हें पारंपरिक किस्‍मों की तुलना में ज्‍यादा उपज मिलती है.

कम समय में ज्‍यादा उपज: पंजाब के किसान कर रहे ऐसे हाइब्रिड चावल की खेती
Noida | Published: 13 Mar, 2025 | 05:25 PM

पंजाब के किसान इन दिनों हाइब्रिड चावल की खेती में लगे हैं. किसानों को इन हाइब्रिड किस्‍मों से काफी फायदा हो रहा है. ऐसे कई किसान हैं जो कपूरथला के रहने वाले हैं और दो तीन तरह की हाइब्रिड किस्‍मों को उगा रहे हैं. किसानों का कहना है कि हाइब्रिड किस्‍मों से उन्‍हें पारंपरिक किस्‍मों की तुलना में ज्‍यादा उपज मिलती है और साथ ही नतीजे भी अच्‍छे रहते हैं. विशेषज्ञों क कहना है कि पंजाब के किसान बाकी साथियों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं.

पारंपरिक किस्‍मों से ज्‍यादा उपज

इंडियन एक्‍सप्रेस ने कपूरथला जिले के खेराबाद गांव के किसान सुरिंदर सिंह के बारे में लिखा है जो करीब 25 एकड़ की जमीन के मालिक हैं. वह पिछले पांच सालों से हाइब्रिड चावल की किस्मों की खेती करते आ रहे हैं. पिछले साल खरीद के समय उन्हें 200 रुपये प्रति क्विंटल की कटौती का सामना करना पड़ा था. वह भी इसलिए क्‍योंकि मिल मालिकों ने हाइब्रिड किस्मों के मिलिंग आउट-टर्न रेशियो यानी मिलिंग के बाद की उपज) को लेकर कुछ आपत्तियां जताई थीं. इसके बाद भी सुरिंदर हाइब्रिड किस्मों को उगाने के लिए दृढ़ हैं. उन्‍हें बेहतर नतीजे मिल रहे हैं और उपज भी ज्‍यादा हासिल हो रही है. अखबार के अनुसार सुरिंदर प्रति एकड़ करीब 35 क्विंटल की उपज हासिल करते हैं. यह पारंपरिक किस्मों से मिलने वाली उपज से करीब 7 से 9 क्विंटल ज्यादा है.

डीलर करते हैं बीजों की कालाबाजारी

सुरिंदर 7501 और 7301 जैसी ‘सावा’ किस्मों की खेती कर रहे हैं जो 125 से 130 दिनों में पक जाती हैं. उन्होंने कहा, ‘इन किस्मों को अपने छोटे फसल चक्र की वजह से करीब 35 किलोग्राम कम बीज की जरूरत होती है और पानी की अच्छी बचत होती है.’ उनका कहना था कि हाइब्रिड किस्मों को कीटों या बीमारियों के लिए अतिरिक्त कीटनाशक स्प्रे की जरूरत नहीं होती है. सुरिंदर ने सरकार से हस्तक्षेप करके किसानों को कम दरों पर हाइब्रिड चावल के बीज मुहैया कराने का अनुरोध किया है. सुरिंदर की मानें तो डीलर अक्सर इन बीजों को बढ़ी हुई कीमतों पर बेचते हैं और इसे नियंत्रित करने की जरूरत है.

उर्वरक और पानी का कम प्रयोग

इसी तरह से लुधियाना के भैणी साहिब के एक और किसान शुभदीप सिंह पिछले तीन सालों से सावा 134 और सावा 7301 उगा रहे हैं. 10 एकड़ जमीन के मालिक शुभदीप को प्रति एकड़ 36 से 37 क्विंटल की उपज हासिल होती है. उनका कहना है कि यह पारंपरिक किस्मों से काफी ज्‍यादा है. इसके अलावा कम उर्वरकों का इस्तेमाल और पानी की खपत भी कम होती है. शुभदीप ने भी ज्‍यादातर किसानों को हाइब्रिड चावल के बीज न मिलने और डीलरों की तरफ से होने वाली बीजों की कालाबाजारी को लेकर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि उन्हें कोई कटौती नहीं झेलनी पड़ी क्योंकि उन्होंने अपनी फसल खेत में ठीक से पकने के बाद ही बेची.

राइस मिलर्स बचते हाइब्रिड किस्‍मों से

इस बीच पंजाब के कुछ राइस मिलर्स ने पिछले साल हाइब्रिड चावल की मिलिंग कैपेसिटी खास तौर पर इसके मिलिंग आउट-टर्न रेशियो (OTR) को लेकर चिंता जताई थी. मिलर्स ने पिछले साल अपनी मिलों में सरकारी चावल रखना भी बंद कर दिया था क्योंकि सरकार ऐसी किस्मों की खरीद कर रही थी. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने पंजाब में खेती के लिए हाइब्रिड चावल की किस्मों जैसे सावा 127, सावा 134 और सावा 7501 को नोटिफाइड किया है. रिपोर्ट की मानें तो इन किस्मों का OTR 67 प्रतिशत से ज्‍यादा है और टूटा हुआ चावल सिर्फ 20-21 प्रतिशत है. यह अनुपात भारतीय खाद्य निगम (FCI) की तरफ से तय मानकों पर खरा उतरता है.

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