मूंगफली की खेती से पीछे हटने लगे किसान, क्या कीमतों में गिरावट जिम्मेदार?
कुरनूल और नंदयाल जैसे जिलों के किसान बेमौसमी बारिश और कीमतों में गिरावट के चलते मूंगफली की खेती से जी चुराने लगे हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2024 में इसकी खेती घटकर 40,000-45,000 हेक्टेयर पर आ गई है.

पिछले कुछ समय से आंध्र प्रदेश में मूंगफली की खेती करने वाले किसान खबरों में बने हुए हैं. बताया जा रहा है कि यहां के किसानों का अब मूंगफली की खेती से मोहभंग होने लगा है. जहां इसके लिए बारिश की कमी जैसी वजहें जिम्मेदार हैं तो वहीं तेलों की कीमतों में गिरावट भर इसका बड़ा कारण बताया जा रहा है. कहा जा रहा है कि आंध्र प्रदेश के किसानों को मूंगफली के तेल में जमकर इजाफा होने के बाद एमएसपी के सही दाम नहीं मिले हैं. उनकी स्थिति बिल्कुल सोयाबीन के किसानों वाली है जो एमएसपी पर फसल को बेचने के लिए परेशान हैं. आंध्र के कुरनूल में तो कम कीमतों के चलते कई किसानों ने मूंगफली की खेती से हाथ खींचने शुरू कर दिए हैं.
लगातार हो रही है गिरावट
दरअसल कुरनूल और नंदयाल जैसे जिलों के किसान बेमौसमी बारिश और कीमतों में गिरावट के चलते मूंगफली की खेती से जी चुराने लगे हैं. इन दोनों ही जिलों में मूंगफली की खेती पारंपरिक तौर पर होती है और करीब एक लाख हेक्टेयर जमीन पर किसान इसकी खेती करते आ रहे थे. लेकिन एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2024 में इसकी खेती घटकर 40,000-45,000 हेक्टेयर पर आ गई है. साफ है कि क्षेत्र की स्थिति बदल रही है और आंकड़ें इसका बड़ा सबूत हैं.
किसानों को उठाना पड़ता नुकसान
कुरनूल, अनंतपुर के बाद राज्य में मूंगफली का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक जिला है. लेकिन अब यहां पर किसानों को कई चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है. जुलाई 2024 में कम बारिश के चलते फसल को भारी नुकसान हुआ, जिसके चलते प्रति एकड़ 8-14 बैग की उपज कम हुई. वहीं, किसान बीज, खाद, मजदूरी और उपज की ढुलाई सहित बढ़ी हुई लागत का हवाला देते हैं. उनकी मानें तो लागत बढ़कर 30,000-35,000 रुपये प्रति एकड़ हो गई है. मॉनसून के मौसम में प्रति एकड़ 10 बैग से ज्यादा उपज नहीं होने की वजह से किसानों के लिए 5,000-6,000 रुपये प्रति एकड़ का नुकसान अब भारी पड़ रहा है. बाजार की कीमतों में गिरावट ने समस्या को और बढ़ा दिया है.
क्या कहते हैं किसान
जहां करीब छह महीने पहले तक मूंगफली की कीमत 7,000 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा थी तो अब कीमतें 5,000-6,000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच आ गई हैं. किसानों का कहना है कि कीमतों में उतार-चढ़ाव के चलते और खेती से जुड़ी समस्याओं की वजह से उन्हें लगातार नुकसान हो रहा है. इन नुकसान और परेशानी को देखते हुए वो धीरे-धीरे दूसरी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं. कुरनूल जिले में किसानों ने चना, सूरजमुखी, चावल, बाजरा, कपास और प्याज सहित प्रमुख फसलों की खेती के लिए ‘परती-चना’ फसल सिस्टम को अपनाया है. जबकि धान, कपास और अरहर की फसलें बरसात के मौसम में प्रमुख होती हैं. इन फसलों को चना, ज्वार और सूरजमुखी को बरसात के बाद की फसलों के रूप में तरजीह दी जाती है.
तो क्या गायब हो जाएगी मूंगफली की खेती
विशेषज्ञ मूंगफली को एक अहम तिलहन फसल करार देते हैं. यह भारत के कुल तिलहन उत्पादन में 35.29 प्रतिशत का योगदान देती है. लेकिन पिछले दो दशकों में इसकी खेती में गिरावट दर्ज की जा रही है. इस दौरान इसकी खेता का राष्ट्रीय रकबा 83 लाख हेक्टेयर से घटकर 49.71 लाख हेक्टेयर पर आ गया है.
दिलचस्प बात है कि कुरनूल में हरित क्रांति के दौरान तिलहन उत्पादन को बढ़ाने के लिए मूंगफली की खेती का ट्रेंड शुरू हुआ था. यहां पर साल 2021-22 में सभी फसलों में मूंगफली की हिस्सेदारी करीब 95 प्रतिशत रहती थी. साल 2022-23 में यह घटकर 60 प्रतिशत और 2023-24 में 45 प्रतिशत पर आ गई. माना जा रहा है कि अगर इसी तरह से खेती में कमी आती गई तो वह दिन दूर नहीं जब मूंगफली की खेती ही खत्म हो जाए.