गिरिराज बना किसानों की पहली पसंद, जानें क्यों खास है यह फसल?
यह वैरायटी सरसों की एक खास किस्म है, जिसे रबी सीजन में उगाया जाता है.

भारत कृषि प्रधान देश होने के साथ-साथ विविधताओं से भरपूर है, जहां विभिन्न फसलें अपनी विशेषताओं के कारण पहचानी जाती हैं. कुछ फसलें अपने स्वाद के लिए जानी जाती हैं, तो कुछ अपने अनोखे नाम की वजह से चर्चा में रहती हैं. ऐसी ही एक विशेष वैरायटी वाली फसल का नाम गिरिराज है.
दरअसल, यह वैरायटी सरसों की एक खास किस्म है, जिसे रबी सीजन में उगाया जाता है. सरसों, रबी फसल के तहत एक प्रमुख तिलहन फसल मानी जाती है और इसकी खेती किसानों के बीच काफी लोकप्रिय है. यह फसल कम सिंचाई और कम लागत में आसानी से उगाई जा सकती है. आइए जानते हैं सरसों की कुछ उन्नत किस्मों के बारे में.
सरसों की पांच प्रमुख किस्में
- गिरिराज किस्म:
यह सरसों की एक विशेष किस्म है, जो 130 से 140 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इसमें प्रोटीन, फाइबर और खनिजों सहित अन्य पोषक तत्वों का अच्छा स्रोत पाया जाता है. इस किस्म की फलियां लंबी होती हैं और प्रत्येक फली में 17 से 18 बीज होते हैं, जिनका आकार मोटा होता है.
- RH-761 किस्म:
इस किस्म की विशेषता यह है कि इसे कम सिंचाई की आवश्यकता होती है और यह पाले के प्रति सहनशील होती है. इस किस्म से किसानों को 25 से 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है. सरसों के फूल 45 से 55 दिनों में आते हैं और फसल 136 से 145 दिनों में पूरी तरह तैयार हो जाती है.
- RH-30 किस्म:
यह किस्म हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी राजस्थान के लिए बेहतर मानी जाती है. इस किस्म की खास बात यह है कि इसे सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में उगाया जा सकता है.
अगर सरसों की इस किस्म की बुवाई 15 से 20 अक्टूबर तक कर दी जाए, तो यह 130 से 135 दिनों में पक कर तैयार हो जाएगी. इस किस्म से किसानों को 16 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज हासिल हो सकती है. इसमें तेल की मात्रा लगभग 39 फीसदी होती है.
- RH-725 किस्म:
इस किस्म की फसल 136 से 143 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इसकी फलियां लंबी होती हैं और हर फली में 17 से 18 बीज होते हैं. इसके अतिरिक्त, इसकी फलियों की शाखाएं लंबी और अधिक फुटाव वाली होती हैं.
- राज विजय सरसों-2:
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लिए सरसों की यह किस्म बेहतर मानी जाती है. यह फसल 120 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है और अक्टूबर में बुवाई करने पर 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन देती है. इसमें तेल की मात्रा 37 से 40 फीसदी तक होती है.