गेहूं की इस किस्म से होता है किसानों का बंपर फायदा, जानें इसके बारे में
इस किस्म का नाम है करण वैष्णवी DBW 303 जो एक हेक्टेयर में करीब 100 क्विंटल तक की उपज देती है. इस किस्म को हरियाणा के करनाल स्थित इंडियन व्हीट एंड बार्ले रिसर्च इंस्टीट्यूट की तरफ से डेवलप किया है.

गेहूं भारत का मुख्य खाद्यान्न है और रबी सीजन की मुख्य फसल है. फिलहाल देश के ज्यादातर हिस्सों में गेहूं की कटाई शुरू होने वाली है. वहीं अधिकांश हिस्सों में इसकी खेती मुख्य तौर पर होती है. किसान कम से कम लागत में गेहूं की खेती से ज्यादा से ज्यादा फायदा कमा सकें, इस दिशा में लगातार काम हो रहा है. कृषि वैज्ञानिक और विश्वविद्यालयों में इसी मेहनत और सोच का नजीता है गेहूं की एक ऐसी किस्म जो एक हेक्टेयर में सैंकड़ों क्विंटल तक की रिकॉर्ड उपज देती है. इस किस्म का नाम है करण वैष्णवी DBW 303 जिसे वैज्ञानिकों ने एक मील का पत्थर तक करार दिया है.
अक्टूबर से नवंबर के बीच करें बुवाई
गेहूं की बुवाई भारत में अक्टूबर से नवंबर के बीच की जाती है. देर होने पर दिसंबर में भी कुछ किसान इसकी बुवाई करते हैं. करण वैष्णवी को वैज्ञानिकों ने उत्तर पश्चिमी भारत के मैदानी इलाकों के लिए उपयुक्त करार दिया है. साथ ही उनका कहना है कि यह किस्म सिंचित स्थिति में अगेती बुवाई के लिए सही है. अगर किसानों को इससे ज्यादा उपज हासिल करनी है तो समतल उपजाऊ खेत इसके लिए उपयुक्त है. इस किस्म की बुवाई 25 अक्टूबर से नवंबर के पहले हफ्ते तक कर लेनी चाहिए. इसकी फसल को कंडुवा रोग से बचाने के लिए वीटावैक्स (कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत थिरम 37.5 प्रतिशत) प्रति 2 से 3 किलोग्राम बीज से ट्रीटमेंट करना चाहिए.
किन इलाके के लिए है बेहतर
यह किस्म हरियाणा के करनाल स्थित इंडियन व्हीट एंड बार्ले रिसर्च इंस्टीट्यूट की तरफ से डेवलप की गई है. करण वैष्णवी DBW 303 को पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर डिविजन को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी डिवीजन को छोड़कर), जम्मू कश्मीर (जम्मू और कठुआ के अलावा), हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ हिस्सों के किसान इसकी खेती से अच्छा फायदा उठा सकते हैं. हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले और पांवटा घाटी के अलावा उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में इस किस्म की खेती ज्यादा फायदेमंद साबित नहीं होगी.
कैसे करें बुवाई और सिंचाई
ज्यादा उपज के लिए किसान प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम बीज का प्रयोग करें.
लाइन बनाकर बुवाई करनी चाहिए और हर लाइन के बीच 20 सेमी की दूरी हो.
गेहूं की यह किस्म उन क्षेत्रों के लिए है जहां सिंचाई की पर्याप्त सुविधा है.
इस किस्म की फसल को आमतौर पर पांच से छह सिंचाई की जरूरत होती है.
पहली सिंचाई बुवाई के 20 से 25 दिन के बाद करनी चाहिए.
उसके बाद नमी के आधार पर 25 से 35 दिनों के अंतराल पर फसल की सिंचाई करनी चाहिए.
और क्या हैं इसकी खासियतें
गेहूं की यह किस्म परीक्षणों में पैदावार पर खरी उतरी है. कई तरह के टेस्ट्स में इस किस्म की औसत उपज प्रति हेक्टेयर 81.2 क्विंटल आई है. उत्पादन परीक्षणों के तहत इस किस्म ने 97.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की रिकॉर्ड पैदावार के आंकड़ें को हासिल किया. साथ ही यह किस्म पीला, भूरा और काला रतुआ की सभी प्रमुख रोगजनक प्रकारों से पूरी तरह से सुरक्षित है. DBW 303 किस्म में औसतन 101 दिनों में बालियां निकलनी शुरू हो जाती हैं. वहीं यह किस्म 156 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इसके पौधों की ऊंचाई औसतन 101 सेमी तक होती है और इसके 1000 दानों का वजन लगभग 42 ग्राम होता है.