कटहल की पत्तियों पर दिखें दाग-धब्बे? तुरंत अपनाएं ये बचाव के तरीके

जब भी पेड़ इस रोग का शिकार होता है, तो इसकी पत्तियों पर छोटे, भूरे या काले रंग के धब्बे बनने लगते हैं.

कटहल की पत्तियों पर दिखें दाग-धब्बे? तुरंत अपनाएं ये बचाव के तरीके
Published: 22 Feb, 2025 | 09:37 AM

भारत में कटहल (Artocarpus heterophyllus) की खेती मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में की जाती है. यह फल न केवल अपने पोषक तत्वों के लिए बल्कि व्यावसायिक लाभ के कारण भी महत्वपूर्ण है. हालांकि, इसकी खेती में कई प्रकार के रोग लगते हैं, जो पौधे की वृद्धि, फलन और गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं. इनमें सबसे आम पत्ती धब्बा रोग है, जो मुख्य रूप से फफूंद जनित संक्रमण के कारण होता है. इसकी पत्तियों पर धब्बे नजर आने लगते हैं और फसल की उत्पादकता प्रभावित होने लगती है.

ऐसे में कटहल की फसल पर लगने वाले रोगों से बचाव के लिए नियमित देखभाल, जैविक और रासायनिक नियंत्रण उपायों को अपनाना जरूरी है. यदि उचित समय पर नियंत्रण किया जाए, तो कटहल की अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है.

क्या है पत्ती धब्बा रोग?

कटहल के पत्तों पर दिखने वाला यह रोग फफूंद के संक्रमण की वजह से होता है. ऐसा होने के पीछे ये कारण हो सकते हैं:

पत्ती धब्बा रोग के लक्षण

जब भी पेड़ इस रोग का शिकार होता है, तो इसकी पत्तियों पर छोटे, भूरे या काले रंग के धब्बे बनने लगते हैं. धब्बों के चारों ओर हल्के पीले रंग की आभा दिखती है. फिर धब्बे बड़े होकर आपस में मिलने लगते हैं और पत्तियां मुरझाकर झड़ जाती हैं. इससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है और उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

रोग पर नियंत्रण

1. कृषि उपाय: रोगग्रस्त पत्तियों और शाखाओं को तुरंत काटकर नष्ट कर दें. इसके साथ ही खेत में उचित जल निकासी की व्यवस्था करें, ताकि अधिक नमी के कारण फफूंद न लग सके. पौधों लगाते समय उनके बीच पर्याप्त दूरी रखें, जिससे हवा का संचार अच्छा बना रहे.

2. जैविक नियंत्रण: संक्रमण दिखने पर ट्राइकोडर्मा विराइड या स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस का छिड़काव करें. नीम के अर्क या लहसुन-उकरी घोल का उपयोग करें, जो प्राकृतिक कवकनाशी की तरह काम करता है.

3. रासायनिक नियंत्रण: पौधे पर रोग लगने पर बोर्डो मिक्सचर (1%) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3%) का छिड़काव करें. साथ ही मैंकोजेब 75% WP (2 ग्राम/लीटर पानी) या कार्बेन्डाजिम (0.1%) का छिड़काव कर सकते हैं. यदि रोग अधिक फैल गया हो, तो हेक्साकोनाजोल (0.1%) या प्रोपिकोनाजोल (0.1%) का इस्तेमाल करें.