बालाघाट में उगाया जाता है यह चावल, खीर के लिए क्‍यों है बेस्‍ट?

बालाघाट की मिट्टी सबसे बड़ा कारण है कि इस जगह को मध्‍य प्रदेश का धान का कटोरा तक कहा जाता है. चावल की चिन्‍नौर किस्‍म मध्‍य प्रदेश के चावल की पहली ऐसी किस्‍म है जिसे जीआई टैग मिला हुआ है.

बालाघाट में उगाया जाता है यह चावल, खीर के लिए क्‍यों है बेस्‍ट?
Noida | Updated On: 19 Mar, 2025 | 12:59 PM

आज हम आपको मध्‍य प्रदेश के एक ऐसे चावल के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपनी खूशबू और स्‍वाद के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. चावल की चिन्‍नौर किस्‍म मध्‍य प्रदेश के चावल की पहली ऐसी किस्‍म है जिसे जीआई टैग मिला हुआ है. चावल की इस किस्‍म की खेती जबलपुर के करीब बालाघाट में की जाती है. इस वजह से इसे बालाघाट चिन्‍नौर चावल के तौर पर भी जानते हैं. इस चावल को सितंबर 2021 में जीआई टैग दिया गया था.

पकाने में लगता है कम पानी

चिन्‍नौर चावल की खासियत यह है कि ये किस्‍म बासमती नहीं होने के बाद भी अपनी खूशबू से सबका दिल जीत लेता है. इस चावल का पकाने के लिए भी कम पानी की जरूरत होती है. चावल मीठा होता है और बेहद मुलायम होता है. इसलिए इसे खीर बनाने के लिए बेस्‍ट समझा जाता है. हालांकि चावल की यह किस्‍म महाराष्‍ट्र के भंडारा में उगाई जाती है. महाराष्‍ट्र की चिन्‍नौर किस्‍म को साल 2023 में जीआई टैग दिया गया था. मध्‍य प्रदेश ने इस चावल को जीआई टैग दिलाने के लिए काफी लंबी लड़ाई लड़ी थी. बालाघाट की चॉक जैसी दोमट मिट्टी को इस किस्‍म की खेती के सर्वश्रेष्‍ठ करार दिया गया है. अनुकूल परिस्थितियों की वजह से इस चावल का उत्‍पादन वहां सबसे ज्‍यादा होता है.

बालाघाट है धान का कटोरा

बालाघाट की मिट्टी सबसे बड़ा कारण है कि इस जगह को मध्‍य प्रदेश का धान का कटोरा तक कहा जाता है. चावल की इस किस्‍म की खेती यहां के किसान दिल से करते हैं. साल 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार बालाघाट, लालबाड़ा और वारासेवनी के किसानों से अलग करीब 2700 किसान इलाके में चावल की खेती कर रहे हैं. 1525 हेक्‍टेयर की जमीन पर इस चावल की खेती किसान कर रहे हैं. चार साल पहले आई एक रिपोर्ट के अनुसार 1980 टन धान का उत्‍पादन किया गया था.

खेती से पीछे हटने लगे किसान

कई ऐसी वजहें भी हैं जिससे अब किसान इस चावल को उगाने से पीछे हटने लगे हैं. कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो इस किस्‍म के धान के पौधे की लंबाई करीब 170 सेंमी होती है. साथ ही इस फसल की अवधि भी ज्‍यादा यानी 160 दिन है. इसके अलावा चावल का गिरने से भी किसान काफी परेशान रहते हैं. लंबाई और फसल की अवधि की वजह से इसकी लॉजिंग सिरदर्द बन गई है. वैज्ञानिकों के अनुसार चावल की दूसरी किस्‍में प्रति एकड़ पर 20 क्विंटल तक की उपज देती हैं. वहीं चिन्‍नौर चावल प्रति एकड़ अधिकतम आठ से 10 क्विंटल तक की उपज देता है. उपज कम होने की वजह किसान इससे दूर होने लगे हैं.

Published: 19 Mar, 2025 | 12:52 PM

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