जम्मू-कश्मीर में कम होती जा रही है कृषि भूमि, खेती पर आया बड़ा संकट
कभी जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही खेती अब गंभीर तनाव में है. आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि खेती की जमीन में लगातार गिरावट आ रही है. घाटी एक बड़े खाद्य सुरक्षा खतरे की तरफ बढ़ रही है.

‘धरती के स्वर्ग’ के तौर पर मशहूर जम्मू-कश्मीर में आने वाले कुछ दिनों में बड़ा संकट पैदा हो सकता है. एक रिपोर्ट की मानें तो घाटी एक बड़े खाद्य सुरक्षा खतरे की तरफ बढ़ रही है. यहां पर कृषि भूमि लगातार कम होती जा रही है जिससे क्षेत्र के सामने खेती की मदद से खुद को बनाए रखने की क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं. शहरी विस्तार, अनियमित मौसम और घटते सिंचाई स्रोत इस गिरावट को और बढ़ा रहे हैं. इससे क्षेत्र की खाद्य आयात पर निर्भरता बढ़ती जा रही है.
अर्थव्यवस्था की रीढ़ है खेती
कश्मीर ऑब्वजर्वर की एक रिपोर्ट के अनुसार कभी जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही खेती अब गंभीर तनाव में है. आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि खेती की जमीन में लगातार गिरावट आ रही है. रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर के वित्तीय आयुक्त (राजस्व) के आंकड़ों का हवाला दिया गया है.
इन आंकड़ों पर अगर यकीन करें तो पिछले चार सालों में कुल भूमि का शुद्ध बोया गया क्षेत्र करीब करीब 30 से 31 फीसदी पर स्थिर रहा है. साल 2020-21 में यह 736,000 हेक्टेयर था, जो 2022-23 में घटकर 733,000 हेक्टेयर रह गया. इससे पहले 2023-24 में मामूली सुधार के साथ 738,000 हेक्टेयर हो गया था.
साथ ही, परती भूमि – जो कभी खेती योग्य थी, अब बिना खेती के रह गई है. यह साल 2020-21 में 120,000 हेक्टेयर से बढ़कर 2023-24 में 135,000 हेक्टेयर हो गई है. रिपोर्ट की मानें तो यह कृषि क्षेत्र के संकट की तरफ इशारा करता है. इसी अवधि में बंजर और खेती योग्य भूमि भी 295,000 हेक्टेयर से बढ़कर 302,000 हेक्टेयर हो गई है.
खेती की जमीन पर बन रहीं कॉलोनियां
बताया जा रहा है कि इस बदलाव में एक प्रमुख योगदान खेती की जमीन का तेजी से आवासीय कॉलोनियों, कमर्शियल कॉम्प्लेक्सेज और सड़कों में बदला जाना है. जबकि गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली जमीन साल 2020-21 में 214,000 हेक्टेयर से बढ़कर 2023-24 में 215,000 हेक्टेयर हो गई है. यह ट्रेंड छोटा है लेकिन कहा जा रहा है कि खेती योग्य भूमि के लगातार हो रहे क्षरण को बताता है. वहीं, किसानों का कहना है कि उपजाऊ भूमि रियल एस्टेट और इनफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए खोती जा रही है. किसानों की मानें तो एक बार जब जमीन का एक टुकड़ा कंस्ट्रक्शन के लिए प्रयोग किया जाता है तो फिर इस पर दोबारा खेती नहीं की जा सकती है.
क्लाइमेट चेंज भी बड़ी वजह
वहीं दूसरी तरफ अनिश्चित बारिश, लंबे समय तक सूखा और असमय बर्फबारी जैसे अनियमित मौसम पैटर्न भी खेती में बाधा डाल रहे हैं. ग्लेशियर पिघलने और जलवायु परिवर्तन से झेलम और बाकी नदियों में घटते जल स्तर ने सिंचाई को और मुश्किल बना दिया है. उत्तरी कश्मीर के किसानों ने दुख जताते हुए कहा, ‘हमारी नदियां सूख रही हैं और सिंचाई के बिना हम अपनी फसलों को बनाए नहीं रख सकते.’ विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर यह ट्रेंड जारी रहा तो फिर जम्मू-कश्मीर को खाद्य आयात पर निर्भर हो जाएगा.