बैगा समाज की अनोखी पहचान! जानिए कैसे 32 सुइयों से शरीर पर बनता है गोदना
गोदना बनाने के लिए विशेष प्रकार की स्याही बनाई जाती है. जिसमें काले तिलों को अच्छे से भूनकर जलाया जाता है और पीसकर स्याही तैयार की जाती है.

बैगा समाज के लोग अपनी अनूठी परंपराओं और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध हैं, और उनमें से एक बेहद दिलचस्प परंपरा है- गोदना. छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में बैगा आदिवासी महिलाओं का मुख्य श्रृंगार गोदना आर्ट है, जो एक परंपरा के रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. यह कला न केवल शरीर पर खूबसूरत आर्ट बनाती है, बल्कि इसके पीछे गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं भी छुपी हैं. गोदना सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि यह एक जीवनभर चलने वाली परंपरा और समाज की पहचान है. आइए जानते हैं इस अनूठे श्रृंगार के बारे में.
बैगा समाज की अनूठी परंपरा
बैगा समाज में गोदना एक खास परंपरा है, जो शरीर पर 32 सुइयों को एक साथ चुभाकर बनाई जाती है. यह प्रक्रिया एक तरह से शरीर पर तस्वीर उकेरने के समान होती है, जहां दर्द के साथ संतोष और खुशी का अहसास होता है. गोदना बैगा आदिवासी महिलाओं के लिए केवल एक श्रृंगार नहीं, बल्कि एक गहरे सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व का प्रतीक है. गोदना करने वाली महिला को “बदनीन” कहा जाता है, जो शरीर पर खास प्रकार से आकृतियां उकेरती है. यह कला एक खास स्याही से की जाती है, जो प्राकृतिक तत्वों से बनाई जाती है.
प्राकृतिक रंगों से बनी खास स्याही
गोदना बनाने के लिए विशेष प्रकार की स्याही बनाई जाती है. इसे बनाने के लिए बदनीन पहले काले तिलों को अच्छे से भूनकर जलाती है. फिर जलने के बाद उस स्याही को एकत्रित किया जाता है. इस स्याही से बदनीन 32 सुइयों का इस्तेमाल करके शरीर पर विभिन्न चित्र और चिन्ह उकेरती है. बैगा समाज में यह सबसे महत्वपूर्ण और अनूठा श्रृंगार माना जाता है.
बाल्यावस्था से शुरू होती है गोदना की परंपरा
बैगा समाज में गोदना की परंपरा बहुत छोटी उम्र से शुरू हो जाती है. लड़कियां 6 साल की उम्र से ही गोदना गुदवाने लगती हैं. इस उम्र में लड़की के सिर पर एक वी आकार का चिन्ह बनाया जाता है. इसके बाद शादी के बाद भी ये महिलाएं अपने शरीर पर बने गोदना को अपनी संस्कृति और परंपरा के रूप में मानती हैं. बैगा समाज में यह माना जाता है कि माता-पिता द्वारा शरीर पर बनाए गए गोदना को कभी नहीं मिटाया जा सकता, और यह एक स्थायी निशानी होती है.
गोदना का समाज में महत्व
गोदना गुदवाने वाली महिलाओं को बैगा समाज में सम्मान मिलता है. यह सिर्फ एक शारीरिक श्रृंगार नहीं, बल्कि एक समाजिक पहचान भी बनता है. गोदना शरीर के विभिन्न हिस्सों पर किया जाता है, जैसे माथा, कपाल, हाथ, पीठ, जांघ, पैर और छाती पर. इससे महिलाओं को समाज में उच्च सम्मान मिलता है.
गोदना का चिकित्सा लाभ
कुछ समुदायों का मानना है कि गोदना शारीरिक लाभ भी पहुंचाता है. संताल समुदाय की लमिया बाई रुखमीदादर के अनुसार, अगर किसी बच्चे को चलने में परेशानी होती है, तो उसकी जांघों के आसपास गोदना करने से वह न केवल चल सकता है, बल्कि दौड़ भी सकता है. इसके अलावा, गोदना शिराओं में प्रवाहित होने वाली दवाओं के रूप में भी काम करता है, जो शरीर को गंभीर बीमारियों से बचाने में मदद करता है. यह एक्यूपंचर की तरह काम करता है और शारीरिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है.
(कवर्धा छत्तीसगढ़ से मोहित शुक्ला की रिपोर्ट )