इंजीनियर से किसान बने इस शख्‍स ने ऐसे किया ऑर्गेनिक फार्मिंग में कमाल

नुसार पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर नवतेज सिंह को कोविड महामारी के समय प्रकृति, स्वास्थ्य और भोजन की अहमियत का एहसास हुआ. इसके बाद उन्‍होंने अमृतसर के वेरका गांव में खेती के पुश्तैनी व्यवसाय में लौटने को प्रेरित किया.

इंजीनियर से किसान बने इस शख्‍स ने ऐसे किया ऑर्गेनिक फार्मिंग में कमाल
Agra | Updated On: 7 Mar, 2025 | 12:15 PM

पंजाब के अमृतसर में इंजीनियर से किसान बने नवतेज सिंह ने कुछ ऐसा किया है जो वाकई बाकी प्रेरित करने वाला है. उन्‍होंने यहां के शहरी क्षेत्र में नेशनल हाइवे पर पांच एकड़ की जमीन रियल एस्टेट डेवलपर्स के लिए अरबों रुपये की हो सकती है, लेकिन नवतेज सिंह के लिए इसकी कीमत कुछ और ही है. वह अपने परिवार और व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पारंपरिक फसलें उगाते हैं, जिनमें प्रजनन के जरिए कोई बदलाव नहीं किया जाता.

क्‍यों लौटे खेती में वापस

अखबार द ट्रिब्‍यून की एक रिपोर्ट के अनुसार पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर नवतेज सिंह को कोविड महामारी के समय प्रकृति, स्वास्थ्य और भोजन की अहमियत का एहसास हुआ. इस अहसास ने उन्हें अमृतसर के बाहरी इलाके में वेरका गांव में खेती के अपने पुश्तैनी व्यवसाय में लौटने के लिए प्रेरित किया. 2020 में, उन्होंने रासायनिक आधारित खेती से जैविक खेती की ओर रुख करने का फैसला किया. पिछले पांच वर्षों में, उन्होंने विभिन्न पारंपरिक फसलों के साथ प्रयोग किया है, लेकिन मुख्य रूप से गेहूं और चावल की देशी किस्मों को उगाने पर ध्यान केंद्रित किया है.

सोना मोती गेहूं की किस्‍म

उन्‍होंने बताया कि मैंने रागी और बाकी बाजरा की खेती की है, लेकिन महसूस किया कि गेहूं और चावल हमारी रूटीन डाइट का हिस्‍सा है. ये ऑर्गेनिक और नैचुरल होने चाहिए. हमारे पूर्वज फसल के बीजों को संरक्षित करते थे. लेकिन खेती के अत्यधिक व्यावसायीकरण और उच्च उपज वाले संशोधित गेहूं और धान की किस्मों के उभरने के कारण, हम सभी अपने स्वास्थ्य के बजाय बाजार के लिए खेती करने लगे. ऐसे में उन्‍होंने सोना मोती गेहूं की किस्म और पाकिस्तानी बासमती चावल के बीज खरीदे हैं. उन्‍होंने देखा कि कि उनके पोषण मूल्य, स्वाद और सुगंध में खासा सुधार हुआ है.

अब हैं फुलटाइम किसान

अब एक फुलटाइम किसान के तौर पर उन्होंने इन पारंपरिक फसलों का व्यवसायीकरण करना शुरू कर दिया है, जिनमें कोई बदलाव नहीं किया गया. हालांकि, केमिकल बेस्‍ड कीटनाशकों और उर्वरकों के बिना फसल उगाना एक चुनौती बनी हुई है. इसके लिए किसानों को कम उपज स्वीकार करनी पड़ती है. जहां नियमित गेहूं की किस्में प्रति एकड़ 20 क्विंटल उपज देती हैं, वहीं सोना मोती गेहूं प्रति एकड़ केवल 6 क्विंटल उपज देता है.

पाकिस्‍तानी बासमती की खेती

इसी तरह, पाकिस्तानी बासमती चावल की उपज केवल 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ है. इसके अतिरिक्त, रासायनिक कीटनाशकों के बिना खरपतवार मैनेजमेंट और महंगा है. इसके लिए खरपतवारों को मैन्युअल रूप से हटाने की जरूरत होती है. ऑर्गेनिक उर्वरकों के उपयोग से खेती की लागत और बढ़ जाती है. इन चुनौतियों के बावजूद, स्वास्थ्य के प्रति जागरूक उपभोक्ता उन्हें ढूंढते हैं और उनके जैविक कृषि उत्पादों के लिए प्रीमियम का भुगतान करने को तैयार हैं.

अब लॉन्‍च करेंगे अपना ब्रांड

उन्होंने बताया कि शहरी निवासियों को पारिवारिक डॉक्टर की बजाय पारिवारिक किसान की जरूरत है, जो उन्हें ऑर्गेनिक फूड मुहैया करा सके. अब जल्‍द ही वह अपना खुद का ब्रांड लॉन्च करने की योजना बना रहा हूं. भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) से प्रमाणन के लिए आवेदन किया है. जैसे-जैसे लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और पर्यावरण संबंधी संकटों का सामना करना पड़ रहा है, जैविक खेती सिर्फ अतीत की परंपरा नहीं है, बल्कि यह भविष्य भी है.

Published: 7 Mar, 2025 | 01:15 PM

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