भिंडी की खेती से निकोबार के आदिवासी किसान पैट्रिक ने कमाया 2 लाख का फायदा
किसान पैट्रिक ने 3000 वर्ग मीटर की जमीन पर 33.9 क्विंटल की उपज हासिल की. ग्रॉस प्रॉफिट 2,71,200 रुपये था. खेती की लागत, जो 90,000 रुपये थी, को कवर करने के बाद, किसान ने 1,96,200 रुपये का नेट प्रॉफिट कमाया.

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के तहतआने वाले कार निकोबार में कृषि प्रणाली की विशेषता इसकी आदि काल से चली आ रही परंपराओं पर टिका होना है. यहां की खेती मुख्य तौर पर कंद पर निर्भर है. यहां के स्थानीय किसान एक पारंपरिक सिस्टम को अपनाते आए हैं जिसे ‘तुहेट’ प्रणाली के तौर पर जाना जाता है. यह यहां के समुदाय के बीच सामुदायिक श्रम और संसाधन साझा करने पर जोर देती है. यहां के समुदाय के दिल में कार निकोबार द्विप की सांस्कृतिक विरासत और भूमि के लिए काफी सम्मान है. किसान पैट्रिक अपने समुदाय में कई लोगों के लिए एक आदर्श के तौर पर हैं. उन्होंने पारंपरिक खेती के तरीकों को अहमियत देकर भी आज एक अलग पहचान बना ली है.
केवीके से ली खेती की ट्रेनिंग
पैट्रिक को उनके दूरदर्शी दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है. आधुनिक खेती के लिए उन्हें जलवायु परिवर्तन, मिट्टी के क्षरण और कम फसल उपज जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है. इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए, उन्होंने नई खेती की तकनीकों और फसल किस्मों की खोज शुरू की. कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) की ट्रेनिंग एंड विजिट (टीएसपी) प्रोग्राम के तहत, पैट्रिक ने भिंडी की किस्म, अर्का निकिथा को पेश किया. आईसीएआर-केवीके के समर्थन से, पैट्रिक ने टिकाऊ कीट प्रबंधन और जैविक खेती के तरीकों पर ट्रेनिंग हासिल की.
इस मार्गदर्शन ने उन्हें पैदावार को अधिकतम करते हुए अधिक पर्यावरण के अनुकूल दृष्टिकोण अपनाने में सक्षम बनाया है. केवीके के संसाधनों के साथ उनका सक्रिय रुख न केवल उनके खेत को फायदा पहुंचाता है बल्कि उनके समुदाय को अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षित करते हुए नए तरीकों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करता है. पैट्रिक ने माना कि भिंडी की खेती में चुनौतियों से पार पाने के लिए एक टिकाऊ और सही दृष्टिकोण जरूरी है.
केवीके के मार्गदर्शन में चुनी सही किस्म
केवीके निकोबार ने उन्हें महत्वपूर्ण मदद मुहैया कराई. केंद्र ने उन्हें सही किस्म का चयन करने में उनका मार्गदर्शन किया और पूरी प्रक्रिया में तकनीकी सलाह दी. उन्होंने उन्हें नीम के तेल, ब्रह्मास्त्र, नीमास्त्र और जैव संघ जैसे प्राकृतिक रोग नियंत्रण विधियों का उपयोग करके ऑर्गेनिक तरीके से भिंडी उगाने के लिए जरूरी ज्ञान प्रदान किया. इससे उच्च उत्पादकता और स्थिरता दोनों सुनिश्चित हुई. पैट्रिक ने भिंडी की अर्का निकिथा किस्म की खेती की.
वैज्ञानिकों की हर बात मानी
अर्का निकिथा ने पैट्रिक को बेहतरीन आकार की भिंडी की खेती करने का मौका दिया. इसके फल का आकार बेहतर था और फसल पर येलो वेन मोजेक रोग का प्रकोप भी कम था. ऑर्गेनिक तरीके से उगाई गई भिंडी की इस किस्म ने उन्हें प्रीमियम कीमत वसूलने और बीमारी की वजह से फसल के चौपट होने के जोखिम करे काफी हद तक कम करने में सक्षम बनाया. केवीके के वैज्ञानिकों की तरफ से जो भी प्लानिंग इसकी खेती के लिए बताई गई थी, पैट्रिक ने उनका बारीकी से पालनइ किया. अर्का निकिथा ओकरा के साथ पैट्रिक की सफलता वाकई काबिलेतारीफ है.
दो लाख रुपये का फायदा
पैट्रिक ने अच्छी तरह से प्रबंधित 3000 वर्ग मीटर की जमीन पर 33.9 क्विंटल की प्रभावशाली उपज हासिल की. 80 रुपये प्रति किलोग्राम की बिक्री मूल्य के साथ, ग्रॉस प्रॉफिट 2,71,200 रुपये था. खेती की लागत, जो 90,000 रुपये थी, को कवर करने के बाद, किसान ने 1,96,200 रुपये का नेट प्रॉफिट कमाया. पैट्रिक की सफलता इस बात का एक बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे सावधानीपूर्वक योजना और प्रभावी प्रबंधन से खेती में अच्छे नतीजे हासिल किए जा सकते हैं.
बाकी किसानों के लिए बने प्रेरणा स्त्रोत
ऑर्गेनिक फार्मिंग में पैट्रिक की सफलता और उनका अनुभव बाकी किसानों के लिए एक मॉडल के तौर पर काम कर सकता है. ऐसे तमाम किसान जो जिम्मेदार कृषि का अभ्यास करते हुए अपने लाभ को अधिकतम करना चाहते हैं, पैट्रिक की सफलता से सीख सकते हैं. भिंडी की फलियों के एक समान आकार और गुणवत्ता ने उन्हें काफी लोकप्रिय बना दिया. जैविक भिंडी की खेती में पैट्रिक की सफलता ने कार निकोबार में स्थानीय समुदाय पर एक लहर जैसा प्रभाव डाला. कई किसान पैट्रिक के खेत पर उनकी तकनीकों के बारे में जानने और जैविक खेती के माध्यम से उच्च उपज वाली अर्का निकिथा किस्मों की खेती के लाभों को प्रत्यक्ष रूप से देखने के लिए गए.