शहतूत की खेती ने बदली एक किसान की किस्मत, आज कमा रहे हैं 12 लाख रुपये
रखमाजी शेलके ने पाया कि रेशम उत्पादन कृषि और बागवानी की तुलना में अधिक फायदेमंद है क्योंकि शहतूत का पेड़ गंभीर सूखे की स्थिति में भी जीवित रह सकता है.

किसान की सफलता कई लोगों को प्रभावित करती है. आज हम आपको एक ऐसे ही किसान की सफलता की कहानी के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने शहतूत की खेती से अपनी किस्मत तो बदली ही साथ ही साथ बाकी लोगों को भी फायदा पहुंचाया. यह किसान हैं महाराष्ट्र जालना जिले के रखमाजी किशन शेलके, जिन्होंने अपनी समझदारी से अपनी किस्मत बदली.
शेलके जालना के घनसावंगी ब्लॉक के पनेवाडी गांव के रहने वाले हैं. तो चलिए जानते हैं कैसे 2.50 एकड़ खेती योग्य भूमि से शहतूत की खेती करने वाले रखमाजी किशन ने सफलता की कहानी लिखी है.
शहतूत की खेती से मिली नई राह
रखमाजी किशन पहले कपास, सोयाबीन और अरहर जैसी फसलें उगाते थे और इन फसलों से उन्हें सालाना 60,000 रुपये की नेट इनकम होती थी. यह इनकम उनके परिवार की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाती थी. जिससे उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा था. घर चलाने के लिए वह गांव में बाकी किसानों के यहां खेत मजदूर के रूप में काम करते थे. लेकिन एक दिन शेलके ने अपने ही गांव के सरजेराव जरास और जालना के जिला रेशम उत्पादन कार्यालय से रेशम उत्पादन के बारे में जानकारी मिली.
मनरेगा से मिला सहारा
जानकारी हासिल करने के बाद साल 2014-15 में आधी एकड़ भूमि पर रेशम उत्पादन का काम शुरू करने का फैसला किया. साल 2016-17 में उन्होंने MGNREGS के तहत अतिरिक्त एक एकड़ जमीन पर शहतूत की खेती की. अपनी रूचि के तहत ही रामकिशन के अनुसार उन्होंने जमीन पर शहतूत की खेती को बढ़ाया और वर्तमान में शहतूत की खेती के तहत उनका कुल क्षेत्रफल 2.50 एकड़ है.
महारेशम अभियान ने खोले नए रास्ते
मनरेगा के तहत रेशम उत्पादन विकास को बढ़ाने के लिए जिला रेशम उत्पादन कार्यालय, जालना की मदद से एक महारेशम अभियान चलाया जाता है. इस अभियान का मकसद किसानों की मदद के लिए समय-समय पर चलता रहता है. महारेशम अभियान के दौरान जिला रेशम प्रोडक्शन ऑफिस, जालना के अधिकारी कुछ चुने गए गांवों में जाते हैं. ये अधिकारी समूह चर्चा या किसान मेला के जरिये से किसानों से संपर्क करते हैं. मनरेगा के तहत गांव में इच्छुक लाभार्थियों की सूची तैयार की जाती है. इस तरह शेलके के मामले में भी रेशम उत्पादन के लिए तकनीकी मंजूरी दी गई. इसके बाद 2016 में शेलके ने अपने खेत में शहतूत उगाने का काम शुरू कर दिया.
जालना जिला रेशम उत्पादन कार्यालय ने उन्हें रेशम उत्पादन के साथ-साथ मनरेगा के तहत रेशम की खेती बढ़ाने के बारे में जानकारी दी. रेशम उत्पादन एक उच्च तकनीकी का काम है, इसलिए उन्हें जिला रेशम उत्पादन कार्यालय के जरिये रेशम उत्पादन के बारे में जरूरी ट्रेनिंग दी गई. किसान रखमाजी शेलके आज भी समय-समय पर रेशन उत्पादन की ट्रेनिंग लेते हैं. इससे उन्हें रेशन कीट पालने और उससे रेशम बनाने में अच्छी-खासी मदद मिल रही है.
रेशम उत्पादन से बढ़ी आय
मनरेगा के तहत लाभार्थी किसान शेलको को शहतूत के बागानों की देखभाल, रेशम कीट पालन और पालन उपकरणों की खरीद के लिए 174826 रुपये की सहायता दी कई है. इससे उनकी कृषि आय में वृद्धि हुई है. तीन साल की परियोजना अवधि के दौरान शेलके ने 4225 किलोग्राम कोकून का उत्पादन किया और 11.70 लाख रुपये की शुद्ध आय मिली. उन्होंने सिंचाई के लिए 100’x85′ आकार का एक तालाब भी खेत में बनाया. इससे पानी की कमी के समय सिंचाई की समस्या को हल करने में मदद मिली. अब वह सिंचाई के पानी के लिए पूरी तरह से टेंशनफ्री हैं.
रखमाजी शेलके ने पाया कि रेशम उत्पादन कृषि और बागवानी की तुलना में अधिक फायदेमंद है क्योंकि शहतूत का पेड़ गंभीर सूखे की स्थिति में भी जीवित रह सकता है और किसी भी अन्य फसल की तुलना में अधिक आय देता है. उनकी कामयाबी से प्रेरणा लेकर उसी गांव के अन्य 20 किसानों ने अपने खेत में रेशम उत्पादन का काम शुरू किया. इससे गांव के ग्रामीण युवाओं की बेरोजगारी की समस्या को हल करने में मदद मिली.