फिल्मी दुनिया छोड़, बेटी-पिता की जोड़ी ने बंजर जमीन को बनाया स्वर्ग

पिता और बेटी के इस अनोखे फार्म से हर महीने ₹80,000 तक की आमदनी हो जाती है, जो फार्म के ही विकास में लगाई जाती है.

फिल्मी दुनिया छोड़, बेटी-पिता की जोड़ी ने बंजर जमीन को बनाया स्वर्ग
नोएडा | Published: 11 Apr, 2025 | 04:55 PM

‘बेटा, तुझे ज़िंदगी में क्या करना है?’ ये सवाल था एक पिता अनिल राजगुरु का उनकी बेटी से, जो उन्होंने एक रात अपनी बेटी स्नेहा राजगुरु से किया. ये उस वक्त की बात है जब स्नेहा मुंबई में फिल्म इंडस्ट्री में बतौर स्क्रिप्ट सुपरवाइजर काम कर रही थीं. ‘बुलबुल’ और ‘लुका छुपी’ जैसी फिल्मों में उन्होंने योगदान दिया था. फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में अक्सर स्नेहा को देश के खूबसूरत कोनों में जाने का मौका मिलता था, लेकिन उसके मन में कुछ और ही चल रहा था.

फिल्मों से खेती तक का सफर

स्नेहा ने अपने पापा के सवाल के जवाब में कहा, “मैं कुछ ऐसा करना चाहती हूं, जो मुझे प्रकृति से जोड़ दे.”बस फिर क्या था, एक दिन उन्होंने तय किया कि अब मुंबई की फिल्मी दुनिया छोड़कर खेती की ओर बढ़ना है. वो अपना सामान लेकर पुणे लौट आईं.

स्नेहा इसके बाद पश्चिम बंगाल के एक गांव में गईं, जहां उन्होंने 52 दिन एक जंगल के बीच टेंट में रहकर परमाकल्चर सीखा, यानी ऐसी खेती जो पूरी तरह से प्रकृति पर आधारित हो, जिसमें न तो केमिकल हो, न ही जरूरत से ज्यादा संसाधनों की बर्बादी.

ऐसे शुरू हुआ ‘बाप-बेटी फार्म्स’

स्नेहा और अनिल राजगुरु ने पुणे के पास एक बंजर जमीन को चुना. वहीं से ‘BaapBeti Farms’ की शुरुआत हुई. ये एक ऐसा फार्म है जिसमें न सिर्फ जैविक खेती होती है, बल्कि लोगों को प्रकृति से जोड़ने का काम भी हो रहा है.दोनों ने कभी हार नहीं मानी. उन्होंने जमीन को जोन में बांटा दिया. एक तरफ सब्जियों का बाग, दूसरी तरफ मुर्गियों का दड़बा, कहीं घर, तो कहीं सब्जियों की क्यारियां. उन्होंने मिलकर मिट्टी में जान डाली और पेड़-पौधों को बच्चों की तरह पाला.

साथ में सीखा, साथ में जिया

अनिल राजगुरु बताते हैं, “स्नेहा बचपन से ही पेड़-पौधों और प्रकृति की दीवानी रही है. जब उसने खेती की बात की, तो मैंने भी सोचा कि रिटायरमेंट के बाद यही सबसे अच्छा होगा.खेती ने मेरी सेहत भी सुधारी , इससे मेरा 18 किलो वजन कम हुआ और ब्लड शुगर भी कंट्रोल में आ गया.” आज उनके फार्म पर बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशक स्ट्रॉबेरी, शिमला मिर्च, लेट्यूस जैसी सब्जियां उग रही हैं.

अब ‘बाप-बेटी फार्म्स’ सिर्फ एक फार्म नहीं, बल्कि एक सस्टेनेबल रिट्रीट है. यहां मेहमान Airbnb के जरिए रुकते हैं, जैविक खाना खाते हैं, खेती सीखते हैं और प्रकृति के करीब आते हैं.

कमाई का भी जरिया

पिता और बेटी के इस अनोखे फार्म से हर महीने ₹80,000 तक की आमदनी हो जाती है, जो फार्म के ही विकास में लगाई जाती है. स्नेहा कहती हैं, “अब शहर की भागदौड़ में वापस जाने का मन नहीं करता. हर दिन कुछ नया सीखने को मिलता है, बीज से पौधा और पौधे से फल बनते देखना असली सुख है.”

मिट्टी में लिखी एक नई स्क्रिप्ट

जो कहानी कभी फिल्मी स्क्रिप्ट से बनती थी, वो अब खेतों की मिट्टी में लिखी जा रही है. स्नेहा राजगुरु कहती हैं, “यह जिंदगी साधारण नहीं है, हर दिन नया अनुभव, नया सुकून और नई सीख लेकर आता है. मेरे लिए खेती सिर्फ काम नहीं, बल्कि एक विरासत है, जो मैं अपने पापा अनिल राजगुरु के साथ मिलकर बना रही हूं.”

Topics: