पशुओं में आएगी ताकत और बढ़ेगी दूध की मात्रा, 5 फीसदी अधिक प्रोटीन वाली नई चारा किस्म विकसित

ICAR ने झारखंड की बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित उन्नत चारा किस्म को हरी झंडी दी है. इससे पशुओं की सेहत सुधरेगी और दूध उत्पादन में भी इजाफा होगा.

पशुओं में आएगी ताकत और बढ़ेगी दूध की मात्रा, 5 फीसदी अधिक प्रोटीन वाली नई चारा किस्म विकसित
नोएडा | Published: 26 Apr, 2025 | 11:54 AM

झारखंड के किसानों और पशुपालकों के लिए बड़ी खुशखबरी है. रांची स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (BAU) ने एक नई चारा फसल ‘बिरसा लैथायरस-1’ विकसित की है, जिसकी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने रिलीज की सिफारिश कर दी है. ये किस्म सिर्फ ज्यादा चारा नहीं देगी, बल्कि पशुओं के दूध उत्पादन में में लगभग 5 फीसदी इजाफा करेगी.

190 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरे चारे का उत्पादन

इस किस्म को BAU ने ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट (AICRP) के तहत विकसित किया है. बिरसा लैथायरस-1 को खासतौर पर देश के पूर्वोत्तर और मध्य क्षेत्रों के लिए उपयुक्त माना गया है. वैज्ञानिकों के मुताबिक यह किस्म प्रति हेक्टेयर औसतन 190 क्विंटल हरा चारा देती है, जो कि पहले से प्रचलित किस्म ‘महतेओरा’ से 6.3 प्रतिशत ज्यादा है.

पशुओं को मिलेगा ज्यादा प्रोटीन

इसके अलावा, इस किस्म में 4-5 प्रतिशत अधिक कच्चा प्रोटीन पाया गया है, जो कि महतेओरा की तुलना में बेहतर है बीज उत्पादन की बात करें तो यह किस्म 8.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज देती है, जो महतेओरा से 15 प्रतिशत ज्यादा है. इससे पशुओं को अधिक पोषण मिलने के साथ-साथ दूध की मात्रा में सुधार भी आता है. यह किस्म पूर्वोत्तर क्षेत्र की जलवायु में पत्ती झुलसा रोग (लीफ ब्लाइट) के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है और झारखंड की सामान्य उर्वरता वाली, समय पर बोई गई और सिंचित स्थितियों के लिए विशेष रूप से अनुकूल है.

100 वैज्ञानिकों की मौजूदगी में किया गया रिलीज

इस किस्म को BAU के वैज्ञानिक डॉ. योगेन्द्र प्रसाद और डॉ. बीरेन्द्र कुमार ने पिछले दस वर्षों की मेहनत से विकसित किया है. हाल ही में कर्नाटक के धारवाड़ में हुई AICRP की वार्षिक बैठक में करीब 100 वैज्ञानिकों की मौजूदगी में इस किस्म को रिलीज की सिफारिश मिली.

झारखंड में हरे चारे की 46 प्रतिशत कमी

देश में फिलहाल 11.24 प्रतिशत हरे चारे की कमी है, जबकि झारखंड में यह आंकड़ा 46 प्रतिशत तक पहुंच चुका है. ऐसे में यह किस्म किसानों और पशुपालकों के लिए बड़ी राहत बन सकती है.इस उपलब्धि पर BAU की जेनेटिक्स एवं प्लांट ब्रीडिंग विभाग की प्रमुख डॉ. मणिगोपा चक्रवर्ती, डायरेक्टर रिसर्च डॉ. पीके सिंह और कुलपति डॉ. एससी दुबे ने वैज्ञानिकों को बधाई दी है और उम्मीद जताई कि यह किस्म राज्य में पशुपालन को नई दिशा देगी.

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