बकरा या बकरी, जानिए किसे पालने पर होगा कम समय में ज्यादा मुनाफा?

विदेशों से भी अब भारतीय बकरे के मीट की मांग आने लगी है. खासकर खाड़ी देशों में भारतीय नस्ल के बकरे का मीट काफी पसंद किया जाता है.

बकरा या बकरी, जानिए किसे पालने पर होगा कम समय में ज्यादा मुनाफा?
नोएडा | Updated On: 12 Apr, 2025 | 08:32 PM

पशुपालन का मुख्य उद्देश्य मुनाफा कमाना होता है. अक्सर पशुपालन करने वालों के मन में सवाल आता है कि मुनाफे के लिए बकरी या बकरे, किस को पालना चाहिए? अक्सर इस सवाल का साथ पशुपालक सोच में पड़ जाता है. आज हम आपको बताएंगे कि बकरी नहीं, बल्कि बकरा पालन कम समय में अच्छा रिटर्न कैसे दे सकता है? खासकर उन लोगों के लिए जो छोटे पैमाने पर काम की शुरुआत करना चाहते हैं और जल्द कमाई का रास्ता ढूंढ रहे हैं.

क्यों फायदेमंद बकरा पालन?

पशुपालन एक्सपर्ट्स के मुताबिक बकरी पालने में समय लगता है, क्योंकि जब तक वो बच्चा नहीं देती और दूध देना शुरू नहीं करती है. तब तक बकरी से किसी तरह की कोई आमदनी नहीं होती. वहीं बकरा छह महीने की उम्र में बाजार में बेचने के लिए तैयार होता है. खास बात ये है कि बकरे की मांग सालभर बनी रहती है – चाहे त्योहार हो या आम दिन, मीट के लिए बकरे का बाजार हमेशा गर्म रहता है.

बकरीद जैसे त्योहारों में तो मांग इतनी ज्यादा होती है कि कई पशुपालकों का साल भर का खर्च सिर्फ एक महीने की कमाई से निकल जाता है. यही वजह है कि बकरा पालन अब पारंपरिक खेती का एक मजबूत विकल्प बनता जा रहा है.

विदेशों में भी बकरे के मीट की डिमांड

ग्लोबलाइजेशन के दौर में बाजार अब सिर्फ देश तक सीमित नहीं है. विदेशों से भी अब भारतीय बकरे के मीट की मांग आने लगी है. खासकर खाड़ी देशों में भारतीय नस्ल के बकरे का मीट काफी पसंद किया जाता है. लेकिन पहले एक समस्या यह थी कि एक्सपोर्ट करते समय मीट में पेस्टीसाइड्स या केमिकल्स पाए जाते थे, जो कि बकरों को दिए गए चारे से आते थे.

इस चुनौती से निपटने के लिए मथुरा स्थित केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (CIRG) ने ऑर्गेनिक चारा तैयार करना शुरू किया है. इससे बकरे के मीट में अब हानिकारक तत्व नहीं पाए जाते, जिससे निर्यात में रुकावटें कम हो गई हैं.

कौन-सी नस्लें हैं बेहतर?

अगर आप मीट के मकसद से बकरा पालन करना चाहते हैं, तो नस्ल का चुनाव बेहद जरूरी होता है. देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग नस्लें पाई जाती हैं, लेकिन मीट उत्पादन के लिए कुछ खास नस्लें ज्यादा बेहतर मानी जाती हैं. बरबरी, जमनापरी, जखराना, ब्लैक बंगाल और सुजौत जैसी नस्लें इस मामले में लोकप्रिय हैं.

इनमें से कुछ नस्लों की बकरियां दूध भी अच्छा देती हैं, जिससे एक साथ मीट और दूध दोनों का फायदा लिया जा सकता है. एक ही फार्म से दोहरी आमदनी का रास्ता खुल जाता है.

प्रोफेशनल ट्रेनिंग भी जरूरी

बकरा पालन को एक पेशेवर बिज़नेस के रूप में अपनाने के लिए ट्रेनिंग भी बेहद जरूरी है. इसी को ध्यान में रखते हुए CIRG अब मीट से जुड़े एक खास कोर्स की सुविधा भी दे रहा है. इसमें सिखाया जाता है कि बकरे की स्लॉटरिंग कैसे की जाती है, किस तरह की सफाई रखनी होती है, और स्वास्थ्य मानकों का पालन कैसे हो.

यह ट्रेनिंग न सिर्फ प्रोफेशनल मीट प्रोसेसिंग यूनिट्स के लिए जरूरी है, बल्कि लोकल मीट की दुकानों के लिए भी फायदेमंद है. ट्रेंड लोग ही साफ और क्वालिटी वाला मीट दे सकते हैं, जिससे ग्राहक का भरोसा भी बना रहता है. इससे व्यापार भी बढ़ता है.

बकरा पालन एक ऐसा बिजनेस है जो कम लागत में जल्दी मुनाफा देता है. खासकर जब इसे प्लानिंग और प्रोफेशनल तरीके से किया जाए. अगर सही नस्ल, सही चारा और थोड़ी ट्रेनिंग हो, तो यह कारोबार किसी भी किसान या पशुपालक के लिए एक नया और मजबूत आर्थिक विकल्प बन सकता है.

Published: 12 Apr, 2025 | 03:29 PM

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