FMD: पशुओं में मुंहपका-खुरपका का खतरा, जानिए बीमारी से बचाव का तरीका
पशुओं में मुंहपका-खुरपका का खतरा बढ़ गया है. यह खतरनाक बीमारी पशु की जान तक ले सकती है. एक्सपर्ट ने पशुओं को इस बीमारी से बचाने के उपाय पशुपालकों को बताए हैं.

मुंहपका-खुरपका रोग (FMD) एक ऐसी बीमारी है, जो पशुओं को कमजोर करने के साथ ही, पशुपालकों की कमाई पर चोट करती है. इसे खरेड़ू, चपका या खुरपा के नाम से भी जाना जाता है. ये पशुओं में तेजी से फैलने वाली छूत की बीमारी है. देखा जाए तो यह गाय, भैंस, भेड़, बकरी और सुअर जैसे पशुओं को अपना शिकार बनाती है. तो चलिए इसे आसान तरीके से समझते हैं कि ये क्या है और इससे कैसे निपटने के उपाय क्या है?
क्या है मुंहपका-खुरपका
बात करें इस बीमारी की तो यह एक छोटे से वायरस से फैलती है. वैसे तो इसकी कई किस्में हैं, लेकिन भारत में मुख्यत: ओ,ए,सी तथा एशिया-1 वायरस पाए जाते हैं. यह विदेशी और संकर नस्ल वाली गायों में ज्यादा होता है. इससे पशु ठीक तो हो जाते हैं, लेकिन यह उनको अंदर से कमजोर कर देता है. यह रोग इतना खतरनाक होता है कि पशुओं की शरीर को खुरदरी कर देता है.
कैसे फैलती है बीमारी
यह रोग बीमार पशु के संपर्क में आने से फैलता है. इसके साथ ही पानी, चारा, बर्तन, हवा या लोगों के संपर्क से ये स्वस्थ पशुओं तक आराम से पहुंच जाता है. देखा जाए तो बीमार पशु की लार, मुंह और खुरों के छालों में वायरस भरे होते हैं. उसके बाद जैसे ही स्वस्थ पशु इनके संपर्क में आते ही बीमार हो जाते हैं. यह वायरस नमी में ज्यादा देर तक जीवित रहता है और गर्मी में जल्दी खत्म हो जाता है.
पशु में दिखते हैं ये लक्षण
इस रोग में पशु को तेज बुखार (104-106°F) होता है, जिससे वह खाना-पीना छोड़ देता है. इसके अलावा पशुओं के मुंह से लार टपकती है और चप-चप की आवाज भी आती है और मुंह, जीभ, होंठ और खुरों के बीच छाले पड़ते हैं, जो बाद में फटकर घाव बन जाते हैं. इतना ही नहीं इससे दर्द के कारण पशु लंगड़ाने लगते है जो कि उन्हें कमजोर कर देता है.
पशु का ऐसे करें बचाव
इसका कोई पक्का इलाज नहीं है, लेकिन लक्षण कम किए जा सकते हैं.ये रोग होने पर पशु चिकित्सक से एंटीबायोटिक इंजेक्शन लें और घावों को फिटकरी के पानी से धोकर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाएं. ध्यान देने की बात यह है कि बीमार पशु को अलग रखें और साफ-सफाई का भी उचित ख्याल रखें. इसके साथ ही खाने में हल्का और मुलायम चारा दें और समय पर टीकाकरण कराएं ताकि भविष्य में पशु सुरक्षित रहे.