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सोने से भी कीमती! ये हैं दुनिया की 5 सबसे महंगी और दुर्लभ चाय

दुनिया की ये चाय न केवल स्वाद और सुगंध में अनोखी हैं, बल्कि इनकी दुर्लभता और उत्पादन प्रक्रिया इन्हें बहुत कीमती बना देती है।

सोने से भी कीमती! ये हैं दुनिया की 5 सबसे महंगी और दुर्लभ चाय
Noida | Published: 11 Mar, 2025 | 02:50 PM

चाय दुनिया भर में सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले पेय पदार्थों में से एक है. हालांकि, कुछ चाय इतनी दुर्लभ और कीमती होती हैं कि उनकी कीमत सोने से भी अधिक होती है. इन चायों की खेती विशेष परिस्थितियों में की जाती है और उनकी प्रोसेसिंग भी बेहद खास होती है. यही वजह है कि इस चाय का स्वाद दुनिया के चुनिंदा लोग ही ले सकते हैं. आइए जानते हैं दुनिया की 5 सबसे महंगी और दुर्लभ चायों के बारे में.

1. दा हांग पाओ (Da Hong Pao)

यह चाय चीन के वूई पर्वतों में उगाई जाती है और इसे दुनिया की सबसे महंगी चाय माना जाता है. दा हांग पाओ एक दुर्लभ ऊलौंग चाय है, जिसकी कीमत लगभग $1.2 मिलियन (करीब 10 करोड़ रुपये) प्रति किलोग्राम तक रहती है. इसकी खासियत यह है कि यह चाय बहुत पुराने पौधों से प्राप्त की जाती है, जो इसे बेहद खास बनाती है.

2. पांडा डंग टी (Panda Dung Tea)

यह चाय चीन के सिचुआन प्रांत में उगाई जाती है और इसे पांडा की खाद से उगाया जाता है. इस अनोखी खेती की वजह से इस चाय की कीमत $70,000 (करीब 58 लाख रुपये) प्रति किलोग्राम तक है. यह चाय एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती है और सेहत के लिए फायदेमंद मानी जाती है.

3. ग्योकुरो (Gyokuro)

ग्योकुरो जापान की सबसे महंगी ग्रीन टी में से एक है. इसे छाया में उगाया जाता है, जिससे इसमें अमीनो एसिड और कैफीन की मात्रा अधिक होती है. इसकी कीमत $650 (करीब 54,000 रुपये) प्रति किलोग्राम तक है. इसका स्वाद मीठा और हल्का होता है.

4. सिल्वर टिप्स इंपीरियल टी (Silver Tips Imperial Tea)

भारत में उगाई जाने वाली यह चाय दार्जिलिंग की सबसे महंगी चायों में से एक है. इसे रात में चंद्रमा की रोशनी में तोड़ा जाता है, जिससे इसकी सुगंध और गुणवत्ता बढ़ जाती है. इसकी कीमत $400 (करीब 33,000 रुपये) प्रति किलोग्राम तक हो सकती है.

5. टी गुआन यिन (Tie Guan Yin)

यह एक विशेष ऊलौंग चाय है, जो चीन के फुजियान प्रांत में उगाई जाती है. इसकी प्रोसेसिंग बहुत जटिल होती है, जिससे इसकी कीमत $3,000 (करीब 2.5 लाख रुपये) प्रति किलोग्राम तक पहुंच जाती है.

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