गेहूं की इस खास किस्म से होगी 50 क्विंटल उपज, इन बातों का रखें खास ध्यान
गेहूं की यह किस्म के 9107 अपने कम समय में तैयार होने और अधिक उपज देने की क्षमता के कारण चर्चा में है. जहां सामान्य गेहूं की किस्में पकने में लगभग 140 दिन लेती हैं, वहीं यह किस्म सिर्फ 120 दिनों में तैयार हो जाती है.

हर किसान की ख्वाहिश होती है कि उसे कम समय में गेहूं की अधिक उपज मिले. मौजूदा समय में गेहूं की बढ़ती कीमतों को देखते हुए किसानों की यह जरूरत और भी महत्वपूर्ण हो गई है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम आपको एक ऐसी गेहूं की किस्म के बारे में बता रहे हैं, जो कम समय में अधिक पैदावार देकर किसानों की आमदनी बढ़ा सकती है. खासतौर पर बिहार के किसानों के लिए यह किस्म बेहद फायदेमंद साबित हो सकती है. जानिए कौन सी हैं गेहूं की यह किस्म और कैसे यह किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है.
गेहूं की उन्नत किस्म – के 9107
गेहूं की यह किस्म के 9107 अपने कम समय में तैयार होने और अधिक उपज देने की क्षमता के कारण चर्चा में है. जहां सामान्य गेहूं की किस्में पकने में लगभग 140 दिन लेती हैं, वहीं यह किस्म सिर्फ 120 दिनों में तैयार हो जाती है. इसके अलावा, यह किस्म प्रति हेक्टेयर 40-50 क्विंटल तक उपज देने में सक्षम है, जो इसे अन्य वैरायटी की तुलना में अधिक लाभदायक बनाता है.
बिहार के सिंचित क्षेत्रों में किसान इस किस्म की बुवाई समय पर कर सकते हैं. बेहतर उपज के लिए 15 से 30 नवंबर के बीच बुवाई करना सबसे उचित रहता है. इसका मतलब यह है कि अगर किसान बुवाई में लेट भी हो जाएं तो भी इस किस्म की बुवाई करके फायदा उठा सकते हैं.
अन्य एडवांस्ड किस्में
न सिर्फ 9107 बल्कि गेहूं की कई और वैरायटी भी हैं जो 120-130 दिनों में तैयार हो जाती हैं और 40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती हैं. अगर किसान तेजी से अधिक उत्पादन चाहते हैं, तो वे इन उन्नत किस्मों को भी अपना सकते हैं. अगर आप भी अपनी पैदावार बढ़ाकर अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो इस किस्म को अपनाना आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.
कौन-कौन सी किस्में
के 307
पीबीडब्ल्यू 343
पीबीडब्ल्यू 443
डीबीडब्ल्यू 14
डीबी डब्ल्यू 39
एचडी 2733
आरडब्ल्यू 3016
एचडी 2824
एचडी 2967
एचयूडब्ल्यू 206
एचयूडब्ल्यू 468
राज 4120
सबौर समृद्धि
सीबीडब्ल्यू 38
एचआई 1556
बीजोपचार और खाद प्रबंधन के टिप्स
बेहतर उत्पादन और रोगमुक्त फसल प्राप्त करने के लिए बुवाई से पहले बीजोपचार और खाद प्रबंधन बेहद जरूरी है. इससे फसल की अंकुरण क्षमता बढ़ती है और रोगों से सुरक्षा मिलती है. बुवाई से पहले बीज की अंकुरण क्षमता की जांच जरूर करें. बीजोपचार से बीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिससे फसल अधिक स्वस्थ और उत्पादक बनती है. अगर बीज उपचारित नहीं है तो इन उपायों को अपनाएं:
बीटा वैक्स या बैविस्टीन – 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
रैक्सिल – 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज
थायमेथोक्सम (क्रूजर) – 2 मिली प्रति किलोग्राम बीज
एजोटोबैक्टर और पीएसबी – 4 पैकेट (200 ग्राम प्रति पैकेट) प्रति 40 किलोग्राम बीज
खाद और उर्वरकों का प्रयोग
संतुलित पोषण से गेहूं की अच्छी उपज सुनिश्चित होती है. सिंचित और समय पर बुवाई के लिए उर्वरकों को इस तरह से प्रयोग करें:
नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश – 62:25:15 किलो प्रति एकड़
डीएपी (डाय अमोनियम फॉस्फेट) – 50 किलो प्रति एकड़
म्यूरेट ऑफ पोटाश – 30 किलो प्रति एकड़ (अलग से छिड़काव करें)
एनपीके मिश्रण (12-32-16) – 75 किलो प्रति एकड़
कैसे करें यूरिया का प्रयोग
पहली, दूसरी और तीसरी सिंचाई से पहले 35 किलो प्रति एकड़ यूरिया का हाथ से छिड़काव करें. हल्की मिट्टी वाले खेतों में सिंचाई के बाद यूरिया डालें. बिहार की मिट्टी में सल्फर और जिंक की कमी होती है. इसलिए जिंक सल्फेट को 10 किलो प्रति एकड़ की दर से बुवाई के समय डालें. इन उपायों को अपनाकर किसान बेहतर अंकुरण, तेज विकास और अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं.