उत्तर भारत के किसानों के लिए बेहतरीन ऑप्शन कुफरी पुखराज आलू, जानें खूबियां

ये आलू जल्दी पकने वाला होता है. कुफरी पुखराज अर्ली से मीडियम मच्योरिटी वाली किस्म है, जिससे किसान इसे कम समय में उगा सकते हैं.

उत्तर भारत के किसानों के लिए बेहतरीन ऑप्शन कुफरी पुखराज आलू, जानें खूबियां
आगरा | Updated On: 8 Apr, 2025 | 02:04 PM

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गई कुफरी पुखराज आलू की एक ऐसी उन्नत किस्म है, जो उत्तर भारत के मैदानी और पठारी क्षेत्रों के लिए बेहद उपयुक्त मानी जाती है. इसकी खास बात यह है कि यह कम समय में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 350 से 400 क्विंटल तक उत्पादन देती है. ज्यादा उपज और अच्छी गुणवत्ता के कारण यह किस्म किसानों के बीच लगातार लोकप्रिय हो रही है और आलू की खेती करने वालों के लिए एक फायदेमंद ऑप्शन बनती जा रही है.

कुफरी पुखराज आलू की खूबियां

कुफरी पुखराज आलू की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह जल्दी पकने वाली किस्म है. इसे “अर्ली से मीडियम मच्योरिटी” वाली किस्म माना जाता है, जिसका मतलब है कि किसान इसे कम समय में उगाकर जल्दी बाजार में बेच सकते हैं. यह आलू बीमारियों के प्रति भी काफी हद तक सुरक्षित रहता है, यह अर्ली ब्लाइट (जल्दी झुलसा रोग) के प्रति रेजिस्टेंस रखता है और लेट ब्लाइट (देरी से लगने वाला झुलसा रोग) के प्रति भी मध्यम स्तर की प्रतिरोधक क्षमता रखता है.

इस किस्म की स्टोरेबिलिटी भी अच्छी होती है, यानी किसान इसे कुछ समय तक सुरक्षित रूप से स्टोर कर सकते हैं, जिससे बाजार में सही समय पर बेचकर अच्छा दाम मिल सके. स्वाद की बात करें तो इसका स्वाद हल्का होता है और पकाने के बाद इसका रंग नहीं बदलता, जिससे यह देखने में भी अच्छा लगता है.

इसकी बनावट वैक्स जैसी होती है, जो इसे जल्दी पकने और अच्छी तरह से पकने में मदद करती है. इन सभी खूबियों के कारण कुफरी पुखराज किसानों के लिए एक भरोसेमंद और लाभदायक आलू की किस्म बनती जा रही है.

किसानों के लिए क्यों फायदेमंद?

कुफरी पुखराज आलू की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें कम लागत में ज्यादा उत्पादन मिलता है, जो किसानों के लिए मुनाफे का सौदा बन जाता है. यह किस्म ऐसे क्षेत्रों में भी अच्छी पैदावार देती है जहां खेती के लिए ज्यादा संसाधन उपलब्ध नहीं होते, यानी यह कम इनपुट वाले कृषि इको-सिस्टम के लिए भी उपयुक्त है. उत्तर भारत के मैदानी और पठारी इलाकों में इसकी उपज बेहद अच्छी होती है. इसकी मध्यम स्तर की भंडारण क्षमता के कारण किसान इसे कुछ समय तक सुरक्षित रखकर सही समय पर बाजार में बेच सकते हैं.

इस आलू की उच्च उत्पादन क्षमता, रोगों के प्रति प्रतिरोधक शक्ति, और बेहतर गुणवत्ता इसे किसानों के लिए एक भरोसेमंद और फायदेमंद विकल्प बनाती है. कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि कुफरी पुखराज आलू, कम लागत में ज्यादा लाभ देने की पूरी क्षमता रखता है, जिससे यह किस्म किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने में मददगार साबित हो सकती है.

कुफरी पुखराज आलू की खेती कैसे करें?

कुफरी पुखराज की खेती के लिए उपजाऊ, अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. खेत को अच्छे से जुताई करके भुरभुरा बना लेना चाहिए ताकि आलू की कंद आसानी से बढ़ सकें. मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7 के बीच होना बेहतर रहता है.

खेत की तैयारी के समय 20-25 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी खाद जरूर डालें. साथ ही, संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जैसे उर्वरकों का उपयोग करें. ड्रिप सिंचाई या नालियों के माध्यम से समय-समय पर सिंचाई करते रहें, खासकर जब पौधों में कंद बनना शुरू हो.

बोने का सही समय

उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में कुफरी पुखराज आलू की बुवाई का सबसे अच्छा समय अक्तूबर के मध्य से नवंबर तक होता है. यह किस्म लगभग 70 से 90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, इसलिए यह जल्दी फसल लेने के लिए बहुत ही बढ़िया विकल्प है.

बीज की मात्रा और दूरी

इस किस्म की बुवाई के लिए बीज की मात्रा लगभग 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रखें. आलू के टुकड़ों में 2-3 अंकुर (आँखें) जरूर होनी चाहिए. बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखें. इससे पौधों को भरपूर जगह मिलती है और आलू का आकार भी अच्छा बनता है.

Published: 8 Apr, 2025 | 02:03 PM

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