साठा धान की खेती से परेशान किसान बोएं मक्का की यह किस्म, होगा बंपर फायदा
जवाहर मक्का 216 यह वह किस्म है जिसे कम पानी में बोया जा सकता है. इसकी खेती साठा धान के किसानों के लिए बंपर फायदा साबित हो सकता है. साथ ही साथ इसकी खेती से मिट्टी की सेहत भी बरकरार रहती है.

साठा धान, वह किस्म जिसे सरकार की तरफ से बैन किया गया है. देश के कुछ राज्यों में पानी के गिरते स्तर की वजह से इस पर प्रतिबंध लगाया गया है. यूं तो इस पर बैन है लेकिन फिर भी कहीं- कहीं पर धान की खेती हो रही है. ऐसे में जो किसान सरकारी प्रतिबंधों की वजह से इसकी खेती करने में असमर्थ है और मुनाफा कमाने से चूक जा रहे हैं तो उनके लिए मक्का की एक ऐसी किस्म है जो किसानों के लिए वरदान हो सकती है. जवाहर मक्का 216 यह वह किस्म है जिसे कम पानी में बोया जा सकता है. इसकी खेती साठा धान के किसानों के लिए बंपर फायदा साबित हो सकता है.
साल 2004 में आई बाजार में
जवाहर मक्का 216, यह मक्के वह किस्म है जिसे कम पानी में उगाया जा सकता है. साथ ही साथ इसकी खेती से मिट्टी की सेहत भी बरकरार रहती है. ऐसे में यह किस्म किसानों की आमदनी कई गुना तक बढ़ा सकती है. जवाहर मक्का एक हाइब्रिड किस्म है जिसे भारत के कृषि वैज्ञानिकों ने बड़ी मेहनत से तैयार किया था. साल 2004 में इसे किसानों के लिए जारी किया गया था. वैज्ञानिकों ने इसे देश की जलवायु और मिट्टी के हिसाब से विकसित किया है.
80 से 90 दिन में तैयार
मक्के की यह किस्म 80 से 90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और एक हेक्टेयर में 55-60 क्विंटल तक पैदावार देती है. इस किस्म की जड़ें मजबूत होती हैं जिससे पौधे गिरते नहीं हैं और इसमें कीटों से लड़ने की ताकत भी बहुत ज्यादा होती है. यह एक मध्यम परिपक्वता वाली मक्का किस्म है जो गिरने और जलभराव को सहन करने में सक्षम है. जहां साठा धान की खेती में पानी बहुत ज्यादा लगता है तो वहीं जवाहर मक्का 216 की फसल कम सिंचाई में भी अच्छी उपज तैयार हो जाती है.
30 फीसदी कम लागत
साठा धान की तुलना में मक्के की खेती में लागत भी 30 फीसदी तक कम इतनी रहती है. 30 फीसदी कम लागत में भी किसान इसकी खेती से दोगुना मुनाफा कमा सकते हैं. कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो साठा धान की खेती जहां मिट्टी के पोषक तत्वों को खत्म कर देती है तो वहीं जवाहर मक्का की खेती मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखने में मददगार है. अगर खरीफ के सीजन में इसे जून-जुलाई में बोना ठीक रहता है. वहीं रबी सीजन में बोने के लिए अक्टूबर-नवंबर का समय सही माना गया है.
कब और कैसे करें सिंचाई
इसकी खेती के लिए सामान्य जलवायु को बेहतर माना जाता है. दोमट मिट्टी जहां पानी जमा नहीं होता, वहां इसकी पैदावार बेस्ट करार दी गई है. मिट्टी का पीएच 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए. अगर आपके खेत में पहले धान उगाया जाता था, तो मक्का लगाकर आप मिट्टी को दोबारा ताकतवर बना सकते हैं. बीज बोने के लिए पहली सिंचाई 20 से 25 दिन बाद करें. इसके बाद खेत में नमी के हिसाब से 3-4 बार पानी दें. खाद के लिए 120 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फॉस्फोरस और 40 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर डालें. नाइट्रोजन को तीन हिस्सों में बांटकर खेत में डालें, बुवाई के समय, 30 दिन बाद और 50 दिन बाद.
फफूंद से करें बचाव
मक्के की इस किस्म में कीड़ों से लड़न की क्षमता ज्यादा होती है लेकिन फिर भी तना छेदक या दीमक दिखे तो दो फीसदी नीम का तेल छिड़कें. ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल फफूंद से बचाव के लिए कर सकते हैं. रासायनिक दवाइयों का प्रयोग सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही करें. जब फसल के दाने चमकदार हो जाएं तब इसकी फसल काट लें. लेकिन ध्यान रखें कि इसे स्टोर करने के लिए इसके दानों को अच्छी तरह से सुखा लें नहीं तो फफूंदी लगने का डर रहता है. साथ ही जहां पर इसे स्टोर करके रखें वह जगह सूखी हो और वहां वेंटिलेशन सही से हो.