गर्मी में हिट है टिंडे की खेती, बाजार में जबरदस्त मांग
अगर आप खेती से अच्छी आमदनी कमाना चाहते हैं और कम समय में फसल तैयार करना चाहते हैं, तो टिंडे की खेती आपके लिए एक बेहतरीन ऑप्शन हो सकता है.

गर्मियों का मौसम है और बाजार में हरे-भरे टिंडे खूब दिखाई देते हैं. खाने में स्वादिष्ट और सेहत के लिए फायदेमंद यह सब्जी अब किसानों के लिए भी कमाई का अच्छा जरिया बनता जा रहा है. जी हां! हम बात कर रहे हैं “टिंडा” यानी “एप्पल गॉर्ड” की खेती की, जिसे भारत के कई हिस्सों में टिंडी, टिंडसी, ढेमसे, मेहा जैसे नामों से जाना जाता है.
अगर आप खेती से अच्छी आमदनी कमाना चाहते हैं और कम समय में फसल तैयार करना चाहते हैं, तो टिंडे की खेती आपके लिए एक बेहतरीन ऑप्शन हो सकता है. आइए जानते हैं कैसे करें टिंडे की खेती.
कहां होती है इसकी फसल?
टिंडा बेल पर उगने वाली सब्जी है. इसका आकार गोल और हल्का हरा होता है, और वजन में यह लगभग 50 ग्राम के आसपास होती है. इसकी खेती मुख्य रूप से भारत, पाकिस्तान और नेपाल जैसे दक्षिण एशियाई देशों में की जाती है.
मिट्टी और तापमान
टिंडे की खेती के लिए बलुई-दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है. इसमें पानी अच्छे से निकले और ऑर्गेनिक तत्व भरपूर हों. इसकी मिट्टी का pH मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए. वहीं इसकी खेती के लिए गर्मी और धूप वाली जलवायु सबसे अच्छी रहती है. टिंडा के बीज बोने का सही समय जनवरी से फरवरी तक होता है और बीज बोने के लिए मिट्टी का तापमान 25 से 32 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए.
टिंडे की लोकप्रिय किस्में
पंजाबी टिंडा: चमकदार और सफेद गूदे वाला मीडियम आकार का होता है.
अर्का टिंडा: हल्की हरी त्वचा और मुलायम बालों वाली किस्म.
अनामलाई टिंडा: छोटे और हल्के हरे फल वाली दक्षिण भारत की मशहूर किस्म.
स्वाती (F1 हाइब्रिड): मजबूत बेल और गहरे हरे फल देने वाली किस्म.
खेत की तैयारी और बीज बोना
खेत की मिट्टी को अच्छे से जोत कर भुरभुरा बना लें. खेत में 1.5 मीटर की दूरी पर लंबी क्यारियां बना लें और हर क्यारी में 3-4 बीज 2-3 सेंटीमीटर गहराई में बोएं. अगर आप पंक्ति में बोना चाहते हैं तो बीजों के बीच 18 इंच की दूरी रखें. बीज बोने के बाद लगभग 3 से 4 हफ्तों में पौधे तैयार हो जाते हैं और हर क्यारी में 1-2 स्वस्थ पौधे ही रखें.
खाद और उर्वरकों
टिंडे की अच्छी पैदावार के लिए खेत में पर्याप्त ऑर्गेनिक और केमिकल वाली खाद का इस्तेमाल जरूरी होता है. प्रति हेक्टेयर 10 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद खेत में आखिरी जुताई से पहले डालें.
इसके अलावा, नाइट्रोजन 20 किलो बोते समय और 20 किलो 30 दिन बाद दें. नीम की खली 100 किलो और अजोस्पिरिलम और फॉस्फोबैक्टीरिया 2-2 किलो प्रति हेक्टेयर की मात्रा में मिलाना फसल को मजबूत बनाता है.
टिंडे की कटाई और उत्पादन
जब टिंडे का आकार 10-12 सेंटीमीटर हो जाए और बीज अभी नरम हों, तब फसल काटने का सही समय होता है. सही देखरेख से एक पौधे से 4 तक फल मिल सकते हैं. भारत में औसतन 1 एकड़ में 4 टन तक उपज ली जा सकती है.
फसल के बाद की प्रक्रिया
कटाई के बाद टिंडे को साफ किया जाता है, फिर हाथों से खराब फलों को छांटा जाता है. फिर इन्हें गत्ते के डिब्बों में सावधानी से पैक किया जाता है ताकि फल खराब न हों. इस प्रक्रिया से सब्जी की क्वालिटी बनी रहती है और बाजार में अच्छी कीमत मिलती है.