लुधियाना में Wheat Field Day, 100 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने परखा फसल को
हर साल मार्च में CIMMYT-BISA की तरफ से Wheat Day का आयोजन होता है. इस बार भी यह उत्सव मनाया गया और 18 मार्च को इसका आयोजन लुधियाना में किया गया.

गेहूं भारत की मुख्य फसल है और रबी के सीजन में सबसे बड़ा हिस्सा इसका है. इसकी कटाई का मौसम भी शुरू हो चुका है. गेहूं की कटाई भारत में किसानों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं है और इस मौके का जश्न मनाने के लिए एक Wheat Field Day यानी गेहूं दिवस का आयोजन किया गया. हालांकि इस मौके पर हुआ जश्न कुछ अलग तरह का था, मगर खास था. लुधियाना में हुए इस उत्सव में 100 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया.
किसानों को दी जाती अहम जानकारियां
हर साल मार्च में CIMMYT-BISA की तरफ से Wheat Day का आयोजन होता है. इस बार भी यह उत्सव मनाया गया और 18 मार्च को इसका आयोजन लुधियाना में किया गया. इस मौके पर गेहूं उत्पादकों को ऐसी ग्लोबल ब्रीडिंग प्रक्रिया के बारे में बताया जाता है जो उनके लिए बेस्ट हों. साथ ही यहां पर इस तरह की एडवांस्ड किस्मों के बारे में भी किसानों को बताया जाता है जो आने वाले समय के लिए उपयुक्त साबित हों. इस आयोजन पर रिसर्चर्स के साथ ही साथ खेती से जुड़े युवाओं को भी मौका मिलता है जहां वो अपने अनुभवों को साझा कर पाते हैं.
एमपी और बिहार के भी वैज्ञानिक
इस साल मध्य प्रदेश के जबलपुर, बिहार के समस्तीपुर और पंजाब के लुधियाना स्थित BISA रिसर्च फार्मों पर देश के कई हिस्सों से आए वैज्ञानिकों को रिसर्च टेस्ट्स को प्रत्यक्ष तौर पर परखने के लिए आमंत्रित किया गया था. यह एक ऐसा प्रमुख कार्यक्रम रहा है, जहां रिसर्चर्स ने गेहूं की ऐसी लेटेस्ट और एडवांस्ड किस्मों को देखा जो ज्यादा उपज देने वाली, गर्मी से लेकर सूखा तक झेलने वाली और हर तरह के रोग से बचाव करने वाली थीं. इस साल राष्ट्रीय प्रणाली (सार्वजनिक और निजी क्षेत्र) के 100 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने इस खास दिन में शिरकत की.
क्या है BISA और इसका मकसद
BISA के एमडी डॉक्टर अरुण जोशी ने कहा कि गेहूं की ब्रीडिंग में नई प्रगति को प्रदर्शित करने के मकसद से इसका आयोजन होता है. उनका मानना है कि यह आयोजन फसल उत्पादकता, लचीलेपन और स्थिरता को बढ़ाने की उनकी कोशिशों की दिशा में एक बड़ा कदम है जिससे किसानों को फायदा होगा. BISA की स्थापना पांच अक्टूबर 2011 को भारत सरकार और अंतरराष्ट्रीय मक्का और गेहूं सुधार केंद्र (स्पेनिश नाम CIMMYT) के बीच एक समझौते के माध्यम से की गई थी. इसे नोबेल पुरस्कार विजेता नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग के विश्व स्तर पर विश्वसनीय नाम से बल मिला.