भारत के सिंधु जल संधि तोड़ने से जानिए पाकिस्तान की खेती पर क्या असर पड़ेगा?
भारत के इस फैसले से पाकिस्तान की खेती, पानी और बिजली व्यवस्था पर गंभीर असर पड़ सकता है, क्योंकि पाकिस्तान की 80% खेती सिंधु नदी पर निर्भर है.

भारत ने पाकिस्तान के साथ 64 साल पुरानी सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है. यह कदम 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद उठाया गया है. इस हमले में 26 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें एक विदेशी नागरिक भी शामिल था. जांच एजेंसियों को इस हमले के पीछे पाकिस्तान से जुड़े सबूत मिले हैं. इसके बाद देश की शीर्ष सुरक्षा समिति, कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने संधि को निलंबित करने का फैसला लिया.
क्या है सिंधु जल संधि?
साल 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच यह संधि हुई थी, जिसमें वर्ल्ड बैंक ने मध्यस्थता की थी. इस समझौते के तहत छह नदियों का पानी दोनों देशों में बांटा गया था. इस संधि के तहत भारत को पूर्वी नदियां जैसे रावी, ब्यास, सतलज मिलीं, जबकि पाकिस्तान पश्चिमी नदियां जैसे सिंधु, झेलम, चेनाब मिलीं. भारत को कुल जल का 20% हिस्सा मिलता है, जबकि पाकिस्तान को 80%. भारत को पश्चिमी नदियों के इस्तेमाल का केवल सीमित और गैर-खपत वाले काम (जैसे जलविद्युत) के लिए करने की अनुमति थी.
पाकिस्तान पर क्या असर होगा?
भारत के इस फैसले से पाकिस्तान की खेती, पानी और बिजली व्यवस्था पर गंभीर असर पड़ सकता है. दरअसल पाकिस्तान की 80% खेती सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है. यह प्रणाली 23 करोड़ से ज्यादा लोगों की जरूरतों को पूरा करती है. कराची, लाहौर, मुल्तान जैसे बड़े शहर इसी जल पर निर्भर हैं. इतना ही नहीं, टरबेला और मंगला जैसे बड़े पावर प्रोजेक्ट इन्हीं नदियों से बिजली बनाते हैं. सिंधु प्रणाली पाकिस्तान की GDP में लगभग 25% योगदान देती है.
आसान शब्दों में समझें तो अगर भारत पानी रोकता है या बहाव कम करता है, तो पाकिस्तान के खाद्यान्न उत्पादन पर असर पड़ेगा. देश में में खाने पीने की चीजें बहुत महंगी हो जाएंगी. शहरी जल संकट पैदा हो सकता है. इसके साथ ही बिजली की कमी से उद्योग और आम जनता प्रभावित होगी. नदीं के आस पास बसे ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी और पलायन बढ़ सकता है.
भारत का अब तक का सबसे बड़ा कदम
इससे पहले भारत ने कई बार संधि पर पुनर्विचार की बात की थी, लेकिन पहली बार इसे औपचारिक रूप से निलंबित किया गया है. अब पाकिस्तान की प्रतिक्रिया का इंतजार है. माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में कूटनीतिक तनाव, अंतरराष्ट्रीय दवाब और विश्व बैंक की भूमिका पर भी चर्चा हो सकती है. यह कदम पाकिस्तान को उसकी सबसे बड़ी निर्भरता पानी और खेती के मोर्चे पर दबाव में लाने की कोशिश माना जा रहा है.