अमेरिकी टैरिफ के बाद झींगा उत्पादकों की मुश्किलें बढ़ीं, कीमतों में भारी गिरावट
अमेरिका द्वारा लगाए गए नए टैरिफ ने भारतीय झींगा निर्यातकों के लिए हालात और भी कठिन कर दिए हैं. खासतौर पर उन झींगों के दामों में गिरावट आई है, जिन्हें अमेरिका निर्यात किया जाता था.

आंध्र प्रदेश में झींगा पालन करने वाले लाखों किसान इन दिनों गहरी चिंता में हैं. उनके पसीने से सींचे गए तालाब अब उन्हें मुनाफा नहीं, बल्कि घाटे का बोझ दे रहे हैं. वजह है, अमेरिका द्वारा भारतीय झींगा पर लगाया गया नया टैरिफ. पहले ही वायरस जैसी बीमारियों और बढ़ती लागत से जूझ रहे इन किसानों को अब अपने उत्पाद का दाम भी ढंग से नहीं मिल रहा. झींगे की कीमतों में 10 से 15 प्रतिशत तक की गिरावट ने किसानों की आर्थिक हालत कमजोर कर दी है.
कम कीमतों का नुकसान
झींगा उत्पादक किसान पहले से ही कई समस्याओं का सामना कर रहे थे, जिसमें वायरस के कारण फसलों का खराब होना एक बड़ी समस्या थी. इस कठिन दौर से गुजरते हुए अब अमेरिकी शुल्क के कारण उनके उत्पाद की कीमतें और भी गिर गई हैं. उदाहरण के लिए, पहले 60 काउंट झींगे का दाम 400 रुपये प्रति किलो था, लेकिन अब यह दाम घटकर केवल 230 रुपये तक पहुंच गया है. इस गिरावट से किसानों के लिए मुनाफा कमाना और भी मुश्किल हो गया है.
अमेरिकी टैरिफ का असर
अमेरिका द्वारा लगाए गए नए टैरिफ ने भारतीय झींगा निर्यातकों के लिए हालात और भी कठिन कर दिए हैं. खासतौर पर उन झींगों के दामों में गिरावट आई है, जिन्हें अमेरिका निर्यात किया जाता था. अमेरिका में आमतौर पर 30-50 काउंट के झींगे निर्यात होते थे, जिनकी कीमतें पहले 350-450 रुपये प्रति किलो के बीच थीं, जो अब घटकर आधी रह गई हैं. इस गिरावट ने भारतीय किसानों को अपने उत्पाद का उचित मूल्य पाने में मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.
झींगा पालन अब संकट में
आंध्र प्रदेश की अर्थव्यवस्था में झींगा पालन की भूमिका बेहद अहम है. यहां के लाखों लोग जलीय कृषि व्यवसाय पर निर्भर हैं. आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में करीब 2 लाख 12 हजार हेक्टेयर भूमि पर झींगा की खेती की जाती है, जिससे लगभग 20 लाख लोगों को रोजगार मिलता है. यह उद्योग सिर्फ रोजगार का जरिया ही नहीं, बल्कि ग्रामीण इलाकों की आर्थिक मजबूती की भी नींव है. मगर अब अमेरिकी शुल्क, वायरस और उत्पादन लागत जैसी चुनौतियों ने इस उद्योग को डगमगा दिया है, जिससे किसानों की आजीविका पर गहरा असर पड़ा है.
किसान और सरकार की उम्मीदें
इस कठिन समय में किसानों को उम्मीद है कि सरकार उनकी मदद के लिए कदम उठाएगी. सरकार ने पहले इंटरेस्ट इक्वलाइजेशन स्कीम (IES) और मार्केट एक्सेस इनिशिएटिव (MAI) जैसी योजनाएं बनाई थीं, लेकिन IES योजना अब समाप्त हो चुकी है. हालांकि, सरकार इस मुश्किल से निकलने के लिए लगातार प्रयास कर रही है और किसानों के लिए नई योजनाएं ला रही है. ताकि उनकी आजीविका पर असर न हो सके.