शास्त्री जी से प्रभावित होकर रखा खेती के क्षेत्र में कदम… बना दी ‘सबसे बड़ी’ कंपनी
नौ भाई-बहनों के परिवार में इस युवा ने तय किया कि वह खेती के लिए काम करेगा. नाम था राम गोपाल अग्रवाल. कहानी करीब छह दशक पुरानी हो चुकी है. लेकिन, उनकी यादों में अब भी बिल्कुल ताजा है.

वो दौर था, जब देश संकट से गुजर रहा था. खाने का संकट था. देश चीन के खिलाफ जंग की त्रासदी से उबरने की कोशिश कर रहा था. पाकिस्तान से युद्ध चल रहा था. प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने नारा दिया था जय जवान-जय किसान. देश में हजारों लाखों लोग इस नारे से प्रभावित हुए थे. उन्हीं में से एक युवा दिल्ली का था. श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से ग्रेजुएट उस शख्स का परिवार कपड़ों के काम से जुड़ा हुआ था.चांदनी चौक के किनारी बाजार में रहने वाले इस परिवार के लिए यह काम खानदानी था, जो करीब 100 साल से ज्यादा समय से चल रहा था.
नौ भाई-बहनों के परिवार में इस युवा ने तय किया कि वह खेती के लिए काम करेगा. नाम था राम गोपाल अग्रवाल. कहानी करीब छह दशक पुरानी हो चुकी है. लेकिन युवा से रिटायरमेंट की उम्र तक पहुंच गए राम गोपाल अग्रवाल की यादों में बिल्कुल ताजा है, ‘अमेरिका से लाल सड़ा हुआ गेहूं आता था. पाकिस्तान से लड़ाई के दौरान उसमें भी अमेरिका दबाव डाल रहा था कि लड़ाई बंद की जाए. तब शास्त्री जी ने नारा दिया. उन्होंने पीएम हाउस में दो बैलों की जोड़ी के साथ खेती करके देश को संदेश दिया. मैंने तब तय किया कि कृषि के लिए काम करूंगा.’
आज राम गोपाल अग्रवाल को इंडस्ट्री शॉर्ट फॉर्म में आरजी अग्रवाल के तौर पर भी जानती है. धानुका कंपनी के मालिक अग्रवाल इंडस्ट्री के बड़े नामों में शुमार होते हैं. पेस्टिसाइड्स की बात होती है, तो धानुका की बात होती है… और धानुका की बात होती है, जो आरजी अग्रवाल की बात होती है.
परिवार के साथ आरजी अग्रवाल
शास्त्री जी के विचारों से प्रभावित होकर कृषि क्षेत्र में की एंट्री
प्रधानमंत्री शास्त्री जी ने उस दौर में बहुत लोगों को प्रभावित किया था. उनको लेकर एक और कहानी ज्यादातर लोगों को पता होगी, जब उन्होंने फिल्म स्टार मनोज कुमार से कहा था कि आप खेती को लेकर फिल्म क्यों नहीं बनाते. मनोज कुमार ने तब उपकार फिल्म बनाई थी. शास्त्री जी ने उस दौरान अनाज की कमी से जूझने के लिए देश को एक दिन उपवास रखने को कहा था. अग्रवाल बताते हैं, ‘सोमवार को होटल-रेस्त्रां बंद होते थे. सब लोग व्रत रखते थे. शास्त्री जी बहुत कुछ करना चाहते थे. लेकिन उनका निधन हो गया. मैं उनके विचारों से प्रभावित था. परिवार को बताया कि मैं खेती से जुड़ा कुछ करना चाहता हूं. विरोध हुआ, लेकिन तय कर लिया था तो उससे हटने का कोई मतलब नहीं था.’
आरजी अग्रवाल कहते हैं कि खाने के लिए बाहरी देशों से भीख मांगना मुझे बहुत बुरा लगता था. वो भी ऐसा अनाज, जो आज की तारीख में लोग भरोसा नहीं कर सकते. उसका स्तर इतना खराब हुआ करता था. ऐसे में बहुत सारे लोग आगे आए.
ऐसे हुई करियर की शुरुआत
उस दौर में सरकार ने प्राइवेट सेक्टर के लिए फर्टिलाइजर की शुरुआत की. अग्रवाल कहते हैं, ‘उत्तर भारत में लोग इसका इस्तेमाल करने में हिचकते थे कि जमीन खराब हो जाएगी. दक्षिण भारत में डिमांड थी. हमने कुछ जगह करके दिखाया. पैदावार डेढ़ से दो गुना बढ़ गई. हमने दक्षिण भारत में ज्यादा फर्टिलाइजर बेचा.’ बल्कि पहला ऑफिस भी हैदराबाद में खोला. आज से चालीस साल पहले यानी 1974 में.
अग्रवाल यहां रुकना नहीं चाहते थे. उन्होंने गुड़गांव में एक फैक्ट्री खरीदी, जो 1960 में शुरू हुई थी, लेकिन घाटे की वजह से बंद हो गई. 1980 में इसे खरीदा गया और बकौल आरजी अग्रवाल यहीं से कंपनी के इंडस्ट्रियल ग्रोथ की कहानी शुरू होती है. वो कहते भी हैं कि हमारे लिए इंडस्ट्रियल अनुभव 1980 से अब तक यानी करीब 45 साल का है. अग्रवाल हैदराबाद ऑफिस छोटे भाई के हवाले कर दिल्ली आ गए थे. समस्याएं थीं, लाइसेंस राज था. इंपोर्ट ड्यूटी 150 फीसदी तक थी. विदेशियों की मोनोपॉली थी. लेकिन इन चुनौतियों के बीच भी उन्होंने अपनी जगह बनानी शुरू की और 1985 में पहली पब्लिक लिस्टेड कंपनी शुरू की, जिसको आज हर कोई जानता है- धानुका पेस्टिसाइड लिमिटेड. उसका टेक्निकल प्लांट लगा. 1992 में ड्यूपोंट को भारत लाए. अग्रवाल बताते हैं, ‘चौथे ही साल उसका वॉल्यूम दस लाख लीटर हो गया. इस प्रोडक्ट को खरीदने के लिए लाइन लगती थी.’
यही दौर था, जब पीवी नरसिंह राव की सरकार आई और ओपन इकॉनमी की तरफ देश ने कदम बढ़ाया. इस कदम ने इंडस्ट्रीज के लिए रिवोल्यूशन लाने का काम किया.
आरजी अग्रवाल दोस्तों के साथ पहाड़ों पर छुट्टियां बिताते हुए.
दो रुपए से 1800 रुपए प्रति शेयर तक का सफर
किनारी बाजार के परिवार से निकलकर गुड़गांव के ऑफिस में बैठे आरजी अग्रवाल जब अपनी कंपनी की कहानी सुनाते हैं, तो आंखों की चमक उनकी कामयाबी को बयान करती है, ‘फैक्ट्री खोली थी, तो कोई लोन देने को तैयार नहीं थे. बड़े इंटरेस्ट पर प्राइवेट प्लेयर से हमने पैसे उठाए. आज दस बैंक आगे पीछे घूमते हैं लोन देने के लिए.’ वह कहते हैं कि शेयर दो रुपए का थे, जो मार्केट में हालिया उथल पुथल से पहले 1800 रुपए तक पहुंचा था. इसी तरह 27 साल पहले फार्मा में काम शुरू किया, ‘मानेसर में यूनिट लगाई. चार साल पहले चेन्नई की ऑर्किड फार्मा को टेक ओवर किया. इतने कम समय में इसे डेट फ्री कंपनी बनाया. शेयर वेल्यू जीरो से 1800 पहुंच गया.’
‘साइंटिफिक तरीका अपनाएं, सेफ्टी के साथ इस्तेमाल करें’
पेस्टिसाइड्स के खतरों को अग्रवाल भी मानते हैं और कहते हैं कि इसका इस्तेमाल साइंटिफिक तरीके से होना चाहिए और पूरी सेफ्टी के साथ होना चाहिए. सही मात्रा में इस्तेमाल जरूरी है. इसीलिए कंपनी की तरफ से किसानों को सलाह देने के लिए कंपनी के दो कॉल सेंटर हैं. वो ड्यूपॉन्ट के साथ जुड़ाव के दौरान का किस्सा भी सुनाते हैं, ‘एक कीड़ा होता है अमेरिकन सूंडी, जो किसी पेस्टिसाइड से कंट्रोल नहीं हो रहा था, जो हमने तैयार किया वो ट़ॉक्सिक था. हमारे लोग डेमो करते थे. पेड़ों पर छिड़कते थे, नीचे अखबार बिछा देते थे. वो कीड़ा पेड़ों से टपकता था. लेकिन उस पेस्टिसाइड के लिए सावधानी बरतनी होती थी. ड्यूपॉन्ट ने साथ में मास्क अनिवार्य किया था. लेकिन किसान इस्तेमाल नहीं करते थे. उनको चक्कर आते थे. बहुत सारे लोगों को अस्पताल जाना पड़ा. इसलिए सावधानी बहुत जरूरी है.’
उनका कहना है कि जिस तरह आबादी के साथ खेती की जमीन कम हो रही हैं, बगैर नई तक्नीकों के इतनी पैदावार करना संभव नहीं कि सबका पेट भरे. इसलिए जरूरी है कि नई तकनीकें अपनाएं, कलेक्टिव मार्केटिंग करें, ताकि फसलों की सही कीमत मिल सके. बिना बिल के कोई प्रोडक्ट न खरीदें, क्वालिटी प्रोडक्ट लें, जिससे फसलों को और जमीन को नुकसान न हो.
अब आधिकारिक तौर पर आरजी अग्रवाल रिटायर हो चुके हैं. बेटा और बहू काम करते हैं, पोता भी इसी क्षेत्र में उतर चुका है. वह परिवार जो 100 साल से कपड़ों के बिजनेस के लिए जाना जाता था, आज आरजी अग्रवाल की छह दशकों की यात्रा के बाद खेती के क्षेत्र में काम के लिए जाना जाता है.