रेशम का बिजनेस बनता जा रहा घाटे का सौदा- गिर रहा उत्पादन, जानिए क्या है वजह?
केंद्रीय रेशम बोर्ड के अधिकारियों को उम्मीद है कि दिसंबर तक उत्पादन में सुधार हो सकता है. बावजूद इस संकट ने किसानों को चिन्तित कर दिया है, खासकर उन किसानों को जो इस पेशे में लंबे समय से काम कर रहे हैं.

खेती की दुनिया में भारत का रेशम उद्योग दशकों से एक बेहद खास भूमिका निभा रहा है. भारत में रेशम के उत्पादन की बात करें तो कर्नाटक इस सेक्टर में पहला स्थान रखता है. देश के दक्षिणी राज्य कर्नाटक में रेशम की खेती न केवल किसानों की कमाई का मुख्य जरिया है, बल्कि यह राज्य की आर्थिक स्थिति में भी खास महत्व रखती है. लेकिन इस साल, कर्नाटक के रेशम उत्पादक किसानों के लिए एक बड़ी चिंता सामने आई है. दरअसल कर्नाटक में रेशम के उत्पादन में गिरावट दर्ज हुई है.
क्या कहते हैं आंकड़े?
कर्नाटक, इस साल कच्चे रेशम के उत्पादन में गिरावट देख रहा है. केंद्रीय रेशम बोर्ड (CSB) के आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 सीजन के लिए कर्नाटक का अनुमानित रेशम उत्पादन बीते साल के मुकाबले कम होगा. पिछले साल, कर्नाटक में कच्चे रेशम का उत्पादन 38,913 टन था, जबकि इस साल यह आंकड़ा घटकर लगभग 30,614 टन तक पहुंच सकता है. यह गिरावट चार सालों के बाद आई है, जब लगातार उत्पादन में इजाफा हो रहा था.
हालांकि केंद्रीय रेशम बोर्ड के अधिकारियों को उम्मीद है कि दिसंबर तक उत्पादन में सुधार हो सकता है. बावजूद इस संकट ने किसानों को चिन्तित कर दिया है, खासकर उन किसानों को जो इस पेशे में लंबे समय से काम कर रहे हैं.
किसानों की परेशानियां और बदलाव
कर्नाटक के किसानों के मुताबिक पिछले पांच सालों में शहतूत की फसल पर कई बीमारियों का असर पड़ा है. इन बीमारियों ने शहतूत के उत्पादन को प्रभावित किया है. इससे रेशम के उत्पादन में गिरावट आई. इसके चलते, कई किसान अब रेशम उत्पादन छोड़कर फल, फूल और सब्जियां उगाने में व्यस्त हो गए हैं. किसानों का कहना है कि रेशम उत्पादन से होने वाली कमाई में अब पहले जैसी बात नहीं रही, और यह बदलाव उनकी जीवनशैली पर भी असर डाल रहा है.
चीन से मुकाबला और कीमतों में अस्थिरता
चीन से आयात होने वाला रेशम, भारत के उत्पादन में गिरावट का बड़ा कारण है. चीन से आने वाले सस्ते रेशम ने कर्नाटक के रेशम उत्पादकों को कड़ा मुकाबला दिया है, जिससे भारत के उत्पादक अपना स्थान खोते जा रहे हैं. इसके अलावा, रेशम के कोकून की कीमतों में उतार-चढ़ाव ने भी किसानों को परेशान कर दिया है.
कोकून की हाइब्रिड किस्म की कीमत 650 रुपये प्रति किलो तक पहुंच सकती है, जबकि उत्पादन की लागत 500 रुपये तक बढ़ गई है. इस बढ़ती लागत ने किसानों के मुनाफे को प्रभावित किया है.
मजदूरी संकट और रोगों का असर
कर्नाटक के रेशम उत्पादक किसानों को मजदूरी संकट जैसी बड़ी समस्या का सामना करना पड़ रहा है. रेशम उत्पादन के लिए मजदूरों की भारी आवश्यकता होती है, लेकिन मजदूरों की कमी और अधिक मजदूरी दरें किसानों के लिए एक और चुनौती बन गई हैं. साथ ही, कीटों और रोगों के कारण रेशम की फसल प्रभावित हो रही है, जिससे उत्पादन की लागत में और इजाफा हो रहा है. इन सभी कारणों से कई किसान अब रेशम उत्पादन को छोड़कर अन्य व्यवसायों की ओर रुख कर रहे हैं.