महाराष्ट्र में खेती के लिए नहीं मिल रहे मजदूर, किसानों ने योजनाओं को बताया दोषी
प्रमुख कृषि क्षेत्रों खास तौर पर नासिक में किसानों को उत्पादन को बनाए रखना मुश्किल हो रहा है. कमी की वजह से मजदूरी की लागत बढ़ गई है. मजदूरों को लाने के लिए ट्रैक्टर या गाड़ियां भेजनी पड़ रही हैं.

पूरे महाराष्ट्र में किसान इन दिनों एक नई समस्या का सामना करने को मजबूर हैं. इन किसानों को खेती के कामों के लिए मजदूर ही नहीं मिल रहे हैं. मजदूरों की कमी का श्रेय किसान उन योजनाओं को दे रहे है जिनमें मुफ्त में भोजन और आर्थिक मदद मिलती है. उनका कहना है कि इस तरह की सरकारी कल्याणकारी योजनाओं की वजह से ही अब कृषि मजदूरों की कमी हो गई है. इस वजह से मजदूरी की लागत बढ़ गई है और उत्पादकता पर असर पड़ा है.
अब कभी-कभी नजर आते मजदूर
अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स ने नासिक के सतना तालुका के ताहराबाद के किसान सुरेश महाजन के हवाले से लिखा, ‘गरीब परिवारों के लिए मुफ्त खाद्यान्न, आंगनवाड़ी भोजन और लड़की बहिन योजना जैसी योजनाओं ने कृषि में श्रम संकट को और बढ़ा दिया है. चूंकि इन परिवारों को भोजन और आर्थिक मदद मिल रही है इसलिए अब वो खेतों पर काम करने के लिए तैयार नहीं हैं.’ उनकी मानें तो पहले मजदूर करीब एक महीने तक काम करते थे. लेकिन अब वो सिर्फ हफ्ते में एक ही बार नजर आते हैं.
मजदूरी का खर्च हुआ दोगुना
महाजन ने दावा किया कि इन योजनाओं के कारण पुरुष श्रमिकों में शराब की खपत बढ़ गई है. उन्होंने कहा कि कम वित्तीय दबाव के कारण कई लोग काम करने के बजाय घर पर रहना, मोबाइल वीडियो देखना या शराब पीना पसंद करते हैं. एक और किसान ने भी इसी तरह की चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि कृषि में मजदूरी का खर्च करीब दोगुना हो गया है. किसान संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि पुरुष श्रमिक काम करने से इनकार कर रहे हैं. इससे हमें महिलाओं को काम पर रखना पड़ रहा है या फिर दूरदराज के इलाकों से मजदूरों को लाना पड़ रहा है.
वहीं ठेकेदारों का कहना है कि लड़की बहन, पीएम किसान, आनंदाचा शिधा, उज्ज्वला, शिव भोजन, घरकुल और सब्सिडी वाले अनाज जैसी योजनाओं की वजह से परिवारों की करीब सभी बुनियादी जरूरतें पूरी हो जाती हैं. इसलिए कई मजदूर काम न करने के लिए स्वतंत्र महसूस करते हैं.
मालिक मेहनत कर रहे, मजदूर आराम कर रहे
प्रमुख कृषि क्षेत्रों खास तौर पर नासिक में, जहां प्याज मुख्य फसल है, किसानों को उत्पादन को बनाए रखना मुश्किल हो रहा है. मालेगांव के पिंपलगांव गांव के किसान संजय देसले के हवाले से अखबार ने लिखा, ‘कमी के कारण मजदूरी की लागत बढ़ गई है. हमें मजदूरों को लाने के लिए ट्रैक्टर या गाड़ियां भेजनी पड़ रही हैं और फिर भी, कोई गारंटी नहीं है कि वे आएंगे.’ किसानों का कहना है कि पहले, किसान और मजदूर दोनों ही खेतों में कड़ी मेहनत करते थे. अब, जमीन के मालिक ही मेहनत कर रहे हैं और कई मजदूर घर पर रहना पसंद करते हैं.
नेता बोले, बंद हो ऐसी योजनाएं
किसान नेता और पूर्व सांसद राजू शेट्टी ने ऐसी योजनाओं को तुरंत बंद करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि ये योजनाएं लोगों को आलसी बना रही हैं और सामाजिक समस्याएं पैदा कर रही हैं. उनका कहना था कि सरकार को स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए न कि मुफ्त में दी जाने वाली चीजें बांटनी चाहिए.