सोयाबीन से मक्का की ओर रुख कर रहे किसान, खतरे में सरकार का तिलहन मिशन!
किसानों का एक बड़ा तबका मक्का की खेती को नकदी फसल या फायदे का सौदा मानने लगा है. वहीं सरकार ने तिलहनी फसलों को बढ़ावा देने के लिए जिस अभियान की शुरुआत 19 फरवरी 2020 को थी, अब वही मुसीबत में पड़ता जा रहा है.

केंद्र की मोदी सरकार ने बड़ी उम्मीदों से फरवरी 2020 में तिलहन मिशन को लॉन्च किया था. लेकिन अब जो हालात हैं उससे तो लगता है कि उसका यह मिशन खतरे में आ सकता है. एक रिपोर्ट पर अगर यकीन करें तो सरकार कम समय में ज्यादा आमदनी की लालच में अब सोयाबीन की जगह मक्का की खेती का रुख करने लगे हैं. किसानों को लगने लगा है कि जब मक्का की खेती में कम मेहनत और कम निवेश के साथ ही अच्छी कमाई हो सकती है तो फिर वो सोयाबीन की खेती में क्यों समय बर्बाद करें. वहीं मक्के की खेती में उन्हें मौसम की मार और एमएसपी जैसे झंझटों का सामना भी नहीं करना पड़ता है.
मक्का की खेती बनी फायदे का सौदा
किसानों का एक बड़ा तबका मक्का की खेती को नकदी फसल या फायदे का सौदा मानने लगा है. वहीं सरकार ने तिलहनी फसलों को बढ़ावा देने के लिए जिस अभियान की शुरुआत 19 फरवरी 2020 को थी, अब वही मुसीबत में पड़ता जा रहा है. इस मिशन का मकसद खाद्य तेलों के आयात को कम करना है.
विशेषज्ञों के अनुसार जब से इथेनॉल में मक्के का रोल बढ़ा है तब से ही किसानों की उदासीनता सोयबीन के लिए बढ़ती जा रही है. किसान सोयाबीन की तुलना में मक्के को तरजीह देने लगे हैं. इसकी वजह से अब राष्ट्रीय तिलहन मिशन के लिए चुनौतियां भी बढ़ती जा रही हैं. कहां तो सरकार किसानों को तिलहन की खेती के लिए प्रोत्साहित कर खाद्य तेलों के आयात को कम करने की कोशिशों में लगी तो वहीं मक्के की खेती का क्रेज उसके लिए मुश्किलें पैदा करता जा रहा हे. एक बड़ा तबका अब सोयाबीन जैसी तिलहन फसल को छोड़कर मक्के की ओर रुख करने लगा है.
क्या कहते हैं आंकड़ें
आंकड़ें भी इस तरफ इशारा करने लगे हैं. इन पर अगर यकीन करें तो मध्य प्रदेश में खरीफ 2024 के दौरान मक्का का रकबा 2023 के 15.3 लाख हेक्टेयर की तुलना में बढ़कर 20.8 लाख हेक्टेयर तक हो गया. वहीं सोयाबीन का रकबा 60.6 लाख हेक्टेयर से घटकर 57.77 लाख हेक्टेयर पर आ गया है. इसी तरह से महाराष्ट्र में भी सोयाबीन के रकबे में गिरावट आ रही है. इसका रकबा राज्य में 51.15 लाख हेक्टेयर से घटकर 50.52 लाख हेक्टेयर रह गया. जबकि मक्का का रकबा 9.09 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 11.07 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया.
मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र पारंपरिक रूप से ये राज्य सोयाबीन के प्रमुख उत्पादक हैं. इन राज्यों के किसान अभी तक सोयाबीन को ही नकदी फसल मानते हुए बड़े पैमाने पर खेती करते आए हैं. विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि अगर मक्का की खेती का रकबा बढ़ता रहा तो तिलहनी फसलों के तहत आने वाले क्षेत्र में भारी गिरावट देखने को मिल सकती है. इससे खाद्य तेल आयात पर की निर्भरता को कम करने के भारत के प्रयासों को करारा झटका लग सकता है. गौरतलब है कि भारत दुनिया में खाद्य तेलों का सबसे बड़ा आयातक है. भारत को तेल आयात पर बड़ी राशि खर्च करनी पड़ती है.