किसानों के लिए वरदान बनी टिशू कल्चर तकनीक, खेती हो रही आसान
इस तकनीक में पौधे के किसी भी हिस्से, जैसे पत्ती, तना, जड़ या बीज से कुछ कोशिकाएं लेकर उन्हें एक विशेष माध्यम में विकसित किया जाता है.

भारत में समय के साथ खेती में कई नई-नई तकनीकों का विकास हो रहा है, जिससे किसान न केवल अपनी फसल का उत्पादन बढ़ा रहे हैं, बल्कि उसकी गुणवत्ता में भी सुधार हो रहा है. इन्हीं आधुनिक तकनीकों में से एक है टिशू कल्चर, जिसे ऊतक संवर्धन भी कहा जाता है. यह एक प्रयोगशाला आधारित विधि है, जिसमें किसी भी पौधे के ऊतक (टिशू) को एक विशेष पोषक माध्यम में विकसित किया जाता है. इस प्रक्रिया से नए और स्वस्थ पौधे तैयार किए जाते हैं, जो पूरी तरह से रोगमुक्त होते हैं और तेजी से बढ़ते हैं.
टिशू कल्चर तकनीक क्या है?
इस तकनीक में पौधे के किसी भी हिस्से, जैसे पत्ती, तना, जड़ या बीज से कुछ कोशिकाएं लेकर उन्हें एक विशेष माध्यम में विकसित किया जाता है. यह माध्यम पोषक तत्वों, हार्मोन्स और जीवाणु-नाशक तत्वों से समृद्ध होता है, जिससे पौधों की वृद्धि तेज और स्वस्थ तरीके से होती है.
टिशू कल्चर के मुख्य प्रकार
माइक्रोप्रोपेगेशन: इस विधि में बड़ी संख्या में पौधे तेज़ी से विकसित किए जाते हैं.
कॉलस कल्चर: इसमें पौधों के ऊतकों को कृत्रिम माध्यम में विकसित किया जाता है.
एंब्रायो कल्चर: इस विधि में बीज के भ्रूण को प्रयोगशाला में उगाया जाता है.
प्रोटोप्लास्ट कल्चर: इसमें कोशिका की बाहरी झिल्ली हटाकर कोशिका को विकसित किया जाता है.
किन फसलों में टिशू कल्चर का उपयोग होता है?
भारत में कई फसलों की खेती में इस तकनीक का उपयोग किया जाता है. केला, गन्ना, आलू, स्ट्रॉबेरी, ऑर्किड और कई फूलों की खेती में टिशू कल्चर का सफलतापूर्वक इस्तेमाल हो रहा है. इसके अलावा, एलोवेरा, अश्वगंधा और तुलसी जैसे औषधीय पौधों के उत्पादन में भी यह तकनीक कारगर साबित हुई है. इस विधि से तैयार पौधे एक समान होते हैं और उनकी गुणवत्ता बेहतर बनी रहती है. साथ ही, ये पौधे कीटों और बीमारियों से मुक्त होते हैं, जिससे किसानों को रासायनिक दवाओं और कीटनाशकों पर अधिक खर्च नहीं करना पड़ता.
टिशू कल्चर तकनीक के फायदे
इस तकनीक से कम समय में अधिक संख्या में पौधे तैयार किए जा सकते हैं. पारंपरिक तरीके से पौधों को बढ़ने में कई महीने या साल लग सकते हैं, लेकिन टिशू कल्चर से यह प्रक्रिया तेज हो जाती है. साथ ही, किसी भी मौसम में इस तकनीक से पौधों को उगाया जा सकता है, जिससे किसानों को सालभर खेती करने का मौका मिलता है. यह विधि मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में भी मदद करती है, क्योंकि इससे तैयार पौधे पहले से ही मजबूत और स्वस्थ होते हैं.
टिशू कल्चर अपनाने की प्रक्रिया
इस तकनीक को अपनाने की प्रक्रिया काफी वैज्ञानिक होती है. सबसे पहले, किसी स्वस्थ और उच्च गुणवत्ता वाले पौधे से ऊतक लिए जाते हैं. इन ऊतकों को विशेष लिक्विड से साफ किया जाता है, ताकि किसी भी तरह के बैक्टीरिया या फंगस को हटाया जा सके. इसके बाद इन ऊतकों को पोषक माध्यम में रखा जाता है, जिससे उनकी वृद्धि होती है और धीरे-धीरे वे पौधों का रूप लेने लगते हैं. जब ये पौधे पर्याप्त रूप से विकसित हो जाते हैं, तब इन्हें प्रयोगशाला से ग्रीनहाउस में लाया जाता है और फिर खेतों में लगाया जाता है.
भारत में टिशू कल्चर तकनीक का भविष्य
भारत में वैज्ञानिक और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए टिशू कल्चर तकनीक बहुत महत्वपूर्ण साबित हो रही है. यह किसानों के लिए फायदेमंद होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल भी है. इस तकनीक से मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है, जल संरक्षण बढ़ता है और कीटनाशकों व रसायनों का कम उपयोग होता है. सरकार भी किसानों को इस आधुनिक विधि को अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है, ताकि वे कम लागत में अधिक उत्पादन कर सकें और अच्छी गुणवत्ता की फसलें उगा सकें.