भारत-जापान इस खास टेक्नोलॉजी से तैयार कर रहे हैं गेहूं की नई किस्म!
संयुक्त प्रयासों के तहत Biological Nitrification Inhibition (BNI) तकनीक का उपयोग करते हुए भारत की पहली बीएनआई-सक्षम गेहूं की एक नई किस्म तैयार की जा रही है. माना जा रहा है कि यह तकनीक क्रांतिकारी साबित हो सकती है.

भारत में कृषि उत्पादन को अधिक स्थायी और प्रभावी बनाने के लिए सरकार विभिन्न स्तरों पर प्रयास कर रही है. इसके तहत नई फसल किस्मों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. इसी दिशा में अब भारत और जापान संयुक्त रूप से गेहूं की एक नई उन्नत किस्म विकसित करने के लिए सहयोग कर रहे हैं.
इस परियोजना में आईसीएआर-सेंट्रल सॉइल सैलिनिटी रिसर्च इंस्टीट्यूट (CSSRI), भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR), भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), और बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया (BISA) मिलकर काम कर रहे हैं. इन संस्थानों को जापान के इंटरनेशनल रिसर्च सेंटर फॉर एग्रीकल्चरल साइंसेज (JIRCAS) का सहयोग भी मिल रहा है.
क्रांतिकारी साबित होगी टेक्निक!
संयुक्त प्रयासों के तहत Biological Nitrification Inhibition (BNI) तकनीक का उपयोग करते हुए भारत की पहली बीएनआई-सक्षम गेहूं की एक नई किस्म तैयार की जा रही है. माना जा रहा है कि यह तकनीक कृषि क्षेत्र में कई मायनों में क्रांतिकारी साबित हो सकती है. बीएनआई तकनीक से विकसित गेहूं किस्मों से यूरिया की आवश्यकता कम होगी, जिससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और खेती अधिक टिकाऊ बनेगी.
इसके अलावा, इस तकनीक के माध्यम से कृषि उत्पादकता में वृद्धि होगी और सरकार द्वारा यूरिया पर दी जाने वाली सब्सिडी में भी बचत होगी. बीएनआई तकनीक के उपयोग से कई मौजूदा कृषि चुनौतियों का समाधान संभव हो सकेगा, जिससे किसानों को भी सीधा लाभ मिलेगा. भारत और जापान का यह सहयोग न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान को आगे बढ़ाएगा, बल्कि टिकाऊ कृषि उत्पादन को भी नए आयाम देगा.
जल्द किस्म बनने की उम्मीद
‘द ट्रिब्यून’ की रिपोर्ट के अनुसार, आईसीएआर के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) डॉ. टीआर शर्मा के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने दिसंबर की शुरुआत में JIRCAS का दौरा किया और गेहूं किस्म की प्रगति का जायजा लिया. ICAR-CSSRI के निदेशक डॉ. आरके यादव ने बताया कि लैब और फील्ड टेस्टिंग के प्रारंभिक परिणाम अत्यंत आशाजनक रहे हैं. उन्होंने उम्मीद जताई है कि जल्द ही कम यूरिया खपत वाली नई गेहूं किस्म पेश की जाएगी.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
IIWBR के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सीएन मिश्रा का कहना है कि शुरुआती प्रयोगों में बिना उपज या गुणवत्ता में कमी के यूरिया के उपयोग में 15-20 फीसदी की कमी देखने को मिली है. CSSRI के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. अजय कुमार भारद्वाज ने कहा कि बीएनआई तकनीक से फसल की पैदावार या गुणवत्ता में कोई समझौता नहीं होता. इसके अलावा, यह तकनीक नाइट्रोजन खाद की मांग घटाने में मदद करती है, जिससे खेती में संतुलित पोषण और पर्यावरणीय सुरक्षा सुनिश्चित होती है.
बीएनआई तकनीक क्या है?
बीएनआई (Biological Nitrification Inhibition) तकनीक का उद्देश्य मिट्टी में उपलब्ध नाइट्रोजन को नाइट्रेट में परिवर्तित होने से रोकना है. पारंपरिक कृषि प्रणालियों में नाइट्रोजन के नाइट्रेट में परिवर्तित होने के कारण खाद का अत्यधिक उपयोग करना पड़ता है. बीएनआई तकनीक के इस्तेमाल से फसल को आवश्यक नाइट्रोजन प्रदान करने वाली खादों पर निर्भरता कम होगी. साथ ही ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जल प्रदूषण में कमी आएगी.
भारत और जापान का यह सहयोग न केवल नए वैज्ञानिक प्रयोगों को बल प्रदान करेगा, बल्कि इससे किसानों को बेहतर पैदावार, आर्थिक बचत और पर्यावरण संरक्षण के लाभ भी मिलेंगे. आने वाले दिनों में इस तकनीक से विकसित नई गेहूं किस्म कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है.